मंजुल भटनागर की दो कविताएँ
1-पेड़ की दुनिया
मंजुल भटनागर
वो जो देते हैं
साया चिड़ियों को
घर बनाने का
वो उस घर का किराया नहीं लेते
यह पेड़ ही हैं -----
जो बसा लेते हैं पूरी दुनिया
अपने साये तले
पर भूल के भी अहसान
जतलाया नहीं करते
हम जलातें हैं चिरागों को
अपने घर के लिए
यह रौशनी कभी
चाँद सितारें नहीं लेते
वो जो चलतें हैं
रास्ते खुद बन जाते हैं
पर किसी राह को
वो अपना नहीं कहते .
2- ख़त
साया चिड़ियों को
घर बनाने का
वो उस घर का किराया नहीं लेते
यह पेड़ ही हैं -----
जो बसा लेते हैं पूरी दुनिया
अपने साये तले
पर भूल के भी अहसान
जतलाया नहीं करते
हम जलातें हैं चिरागों को
अपने घर के लिए
यह रौशनी कभी
चाँद सितारें नहीं लेते
वो जो चलतें हैं
रास्ते खुद बन जाते हैं
पर किसी राह को
वो अपना नहीं कहते .
2- ख़त
आसमाँ से पिघल कर बादल
गर मेरे घर पे न
आए होते
मैंने भी कुछ सपनें
हसीं सजाएँ न होते
एक बारिश ने
जिन्हें डूबा दिया
काश किसी ने वो घर
बनाए न होते ,
डूबता शहर
न डूबता मकान होता
न जाने कितने मासूम
इसने दबाए न होते
हमने भी किसी दरख़्त पर
आसरा लिया होता
जलजले के ख़त
यदि हमें आए होते ।
गर मेरे घर पे न
आए होते
मैंने भी कुछ सपनें
हसीं सजाएँ न होते
एक बारिश ने
जिन्हें डूबा दिया
काश किसी ने वो घर
बनाए न होते ,
डूबता शहर
न डूबता मकान होता
न जाने कितने मासूम
इसने दबाए न होते
हमने भी किसी दरख़्त पर
आसरा लिया होता
जलजले के ख़त
यदि हमें आए होते ।
-0-
बहुत आभार ,धन्यवाद रामेश्वर जी
ReplyDeleteManjul ji Aapne prakritk saugaton ki sahaj udarta
ReplyDeleteka bahut hi sunder nirupan kiya hai . Prakriti to srijan aur vighatan dono svabhav vash karati hai hum sab uske hathon ka khiloona hain. Behan- apki kavitaon ke bhav bahut sundar hain.
pushpa mehra
" हमने भी किसी दरख़्त पर/आसरा लिया होता/जलजले के ख़त/यदि हमें आए होते।"...मंजुल जी ! जिस सहज भाव से आपने अपनी इन दो कविताओं " पेड़ की दुनिया " और " ख़त "
ReplyDeleteमें प्रकृति से तालमेल रखने की बात कही है, उसकी मैं दिल से सराहना करता हूँ ......... हार्दिक बधाई !
आपने पेड की दुनिया और खत - बहुत ही सुरुचि के लिखा जिनसे कोई भी शिक्षा ले सक्ता है। अभिनन्दन बहुत बहुत ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन अर्थ लिए हुए ...सार्थक काव्य ....बधाई एवं शुभकामनायें मंजुल जी ...!!
ReplyDelete'पेड़ की दुनिया ' और 'ख़त ' के माध्यम से सुन्दर भावनाओं को बहुत सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है बहुत बधाई आपको !!
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
दोनों ही रचनाएं बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, भावपूर्ण रचनाएँ...बधाई...|
ReplyDeleteप्रियंका गुप्ता
रास्ते खुद बन जाते हैं
ReplyDeleteपर किसी राह को
वो अपना नहीं कहते .
bahuut khpoob
हमने भी किसी दरख़्त पर
आसरा लिया होता
जलजले के ख़त
यदि हमें आए होते ।
kya soch hai kamal
rachana
मंजुल जी,
ReplyDeleteपरोपकार की भावना से ओत प्रोत पहली रचना तथा प्राकृतिक विपदायों के प्रति मानव की बेबसी से पूर्ण दूसरी रचना | बहुत सुन्दर भाव एवं प्रस्तुति | बधाई |
सभी गुनी जन का इतने खूबसूरत सकारात्मक कमेंट्स के लिए सहृदय आभार ,धन्यवाद स्नेह बनायें रखे ।मंजुल भटनागर
Deleteसशक्त संदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteबधाई .
बहुत सुन्दर रचनाये,
ReplyDeleteवृक्ष कबहुँ नहिं फल भखें...
दोनों रचनाएँ बेहद अर्थपूर्ण. शुभकामनाएँ.
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