अनुपमा त्रिपाठी
रात ढली और .... सुबह कुछ इस तरह होने
लगी ....!!
सूरज ऐसा रोशन हुआ
कि मोम भी पिघलने लगी
आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
पिया की पतियाँ लाई
भरी दोपहर याद पिया की
बिजनैया जो डुराने लगी
हूक जिया की पल पल जाने लगी
निरभ्र आसमान में चहकते विहग
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
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बिजनैया -पंखा,डुराए -झुलाना
आभार भैया ,हृदय से ....!!
ReplyDeleteमोहक सरस रचना बधाई अनुपमा जी .
ReplyDeleteजैसे जिन्दगी मुस्कुराने लगी......श्रंगार रस का आस्वादन करवाने के लिए धन्यवाद अनुपमा जी ।
ReplyDeleteआम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
ReplyDeleteपिया की पतियाँ लाई
sunder panktiyan
rachana
prakriti ke anupam sundarta ka bkhan .....
ReplyDeleteसुन्दर सरस रचना अनुपमा जी बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा ....!
ReplyDeletemanbhawan rachna bilkul gulmohar jaisa...saras sangeet jaisa...badhayi swikarein anupma ji...sajha karne ke liye kamboj bhaiya ka aabhar!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना...बहुत बधाई...|
ReplyDeleteप्रियंका
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteअनु
बहुत सुन्दर ...मधुर प्रस्तुति ....बधाई अनुपमा जी
ReplyDeleteज्योत्स्ना शर्मा
Beautifully description of the morning
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDelete"आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
पिया की पतियाँ लाई ........."
.सरस रचना अनुपमा जी बधाई।
डॉ सरस्वती माथुर
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ