पथ के साथी

Monday, June 3, 2013

गुलमोहर से रंग झरे

अनुपमा त्रिपाठी
 रात  ढली   और .... सुबह कुछ इस तरह  होने लगी ....!!
गुलमोहर  से रंग झरे.
सूरज ऐसा रोशन हुआ
कि मोम भी पिघलने लगी
आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
पिया की पतियाँ  लाई
कूक कूक राग वृन्दावनी  सारंग सुनाने लगी ...
भरी दोपहर याद पिया की
बिजनैया जो डुराने लगी
कूजती रही  कोयल
हूक जिया की पल पल जाने लगी
निरभ्र  आसमान में चहकते विहग
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
-0-

बिजनैया -पंखा,डुराए -झुलाना 


14 comments:

  1. आभार भैया ,हृदय से ....!!

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  2. मोहक सरस रचना बधाई अनुपमा जी .

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  3. जैसे जिन्दगी मुस्कुराने लगी......श्रंगार रस का आस्वादन करवाने के लिए धन्यवाद अनुपमा जी ।

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  4. आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
    पिया की पतियाँ लाई
    sunder panktiyan
    rachana

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  5. prakriti ke anupam sundarta ka bkhan .....

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  6. सुन्दर सरस रचना अनुपमा जी बधाई।

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  7. बहुत बहुत आभार यशोदा ....!

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  8. manbhawan rachna bilkul gulmohar jaisa...saras sangeet jaisa...badhayi swikarein anupma ji...sajha karne ke liye kamboj bhaiya ka aabhar!!

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  9. सुन्दर रचना...बहुत बधाई...|
    प्रियंका

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  10. बहुत सुन्दर....

    अनु

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  11. बहुत सुन्दर ...मधुर प्रस्तुति ....बधाई अनुपमा जी

    ज्योत्स्ना शर्मा

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  12. Beautifully description of the morning

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  13. बहुत सुन्दर...
    "आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल

    पिया की पतियाँ लाई ........."
    .सरस रचना अनुपमा जी बधाई।
    डॉ सरस्वती माथुर

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