अस्पताल की नर्स बुलाई
डॉ० आत्मदेव मिश्रआओ देखो बिटिया आई
यह सुन मम्मी मुख बिचकाई
पापा की भृकुटी तन आई
दादी खरी-खोटी सुनाई
हाय ! निगोड़ी कहाँ से आई
आशा-तन्तु टूटा बुआ का
थाली नहीं बजाई
नहीं बजी शहनाई
कोई न लुटाए अन्न-धन सोना
कोई न मोतियन माला
गोतिनी पड़ोसिनी गीत न गाई
नहीं कोई शकुन उठाई
दूसरी बार -
अस्पताल का नौकर आया
हँसकर हमें बताया
आओ देखो बेटा आया
सुन मम्मी का मन हरसाया
पापा का चेहरा खिल आया
अहो भाग्य बेटा घर आया
यह भेद तो जाना ही होगा..
ReplyDeleteसमाज का सच्चा चित्र उकेरा आपने !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
bahut sachchi baat kahi gayi hai is rachna me ... ham chahe jitna apne apko pragatisheel kah len ... lekin abhi bhi aise log hai samaj me ... aksar aise drishya dekhne ko mil jate hai ... halanki ab pahle jaisi baat nahi rahi ...
ReplyDeletebahut achchi kavita hai. man ke bhavon ko gehrayee se darshati hai.
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