दोहे
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बेकल था तेरा हिया, मैं हो उठा अधीर
।
मैं रोया इस पार था,तुम्हें उठी जो
पीर । ।
2
तुम जागे थे रात भर ,दूर कहीं परदेस
।
हम सपनों में खोजते , धरे जोगिया
भेस । ।
3
द्वार तुम्हारा तो मिला ,तुम थे
गुमसुम मौन ।
हमने बाँचा हूक को , और बाँचता कौन
। ।
4
साँस रही परदेस में , जुड़ी कहीं पर
डोर ।
प्रेम नाम जिसको दिया , उसका मिला न
छोर । ।
5
किया आचमन मन्त्र पढ़,सुबह-शाम
जो नीर ।
पोर पोर नम कर गई ,
वो थी तेरी पीर । ।
6
ढूँढ़ा जिसको उम्र भर , उसको कहते प्रीत ।
धरती -सागर खोज के ,मिले
तुम्हीं बस मीत ।
7
अपने ही घर में लगा , हम हैं पाहुन
आज ।
भोर हुई तो चल पड़े ,अपने-अपने काज ।
8
मन्दिर जाकर क्या करूँ , मुझको मिला
न चैन ।
पण्डित जो रहता वहाँ , वह भी है
बेचैन । ।
9
दो पल में माटी हुआ ,जीवन भर का मेल
।
हमसे खेले यार सब , सदा कपट का खेल
। ।
बड़े ही सीख भरे दोहे..
ReplyDeleteबेकल था तेरा हिया, मैं हो उठा अधीर ।
ReplyDeleteमैं रोया इस पार था,तुम्हें उठी जो पीर । ।क्या बात क्या ....!!
प्रेम रस में डूबे हुए , मीठे गुदगुदाते से दोहे हैं ....
दोहों का ये अनोखा रूप देखने को मिला ....
जीवन के मर्म को छूते हुए दोहे....
ReplyDeleteसारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/
दो पल में माटी हुआ ,जीवन भर का मेल ।
ReplyDeleteहमसे खेले यार सब , सदा कपट का खेल । ।
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण दोहे !
डॉ सरस्वती माथुर
वियोग के पीर में गढे अद्भुत दोहे . बधाई है बधाई .
ReplyDeleteShabd 2men gahan abhivyakti bhari hai,apnatv se bharpur dohon ne man moh liya
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर दोहे हैं !
Deleteडॉ सरस्वती माथुर
बहुत भावभरे गहन दोहे हैं एक से बढ़ कर एक.बधाई,
ReplyDeleteसादर,
अमिता कौंडल
बहुत भावपूर्ण...किसी की पीड़ा समझ शब्दों में ढालना...अद्धुत!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...अद्भुत...। हर दोहा इतना सुन्दर लिखा है कि अगर सिर्फ़ एक की तारीफ़ करूँगी तो ग़लत होगा...। इन सभी दोहों को पढ़वाने का आभार...।
ReplyDeleteप्रियंका
एक से एक सुन्दर सौहार्दपूर्ण दोहे बहुत बधाई।
ReplyDeleteहर दोहा अतुल्य भाव और शिल्प लिए ! अति उत्तम !
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण दोहे हैं ये ............
ReplyDeleteसाँस रही परदेस में , जुड़ी कहीं पर डोर ।
प्रेम नाम जिसको दिया , उसका मिला न छोर । ।
बहुत ही गहन भाव लिए हुए है ये दोहा .......
उसका छोर शायद आपके हृदय में ही होगा कहीं बाहर ढूंढने से शायद न ही मिले ।
हृदय बसी
प्रेम साँस की डोर
ढूंढे क्यों छोर
हरदीप
मन्दिर जाकर क्या करूँ , मुझको मिला न चैन ।
ReplyDeleteपण्डित जो रहता वहाँ , वह भी है बेचैन । ।
bhaiya ek ek doda lakh ka hia .is dohe me to kamal ke bhav hain .bhaiya ye niti dohe sada yad kiye jayenge
saader
rachana