रस की गंगा बहती कल -कल ,
शब्दों के अनगिन दीप जले|
भाव-लहरिया उठती -गिरती
जब छंद-घंटिका मधुर बजे |
आओ इंडिया वालो अब भारत के रंग में रंग जाएँ
मिलकर अपनी भाषा के कुछ गीत मधुर गुनगुनाएँ |
हो वेद मन्त्रों से भोर सुहानी
मन में गीता का ज्ञान बसे |
ममता के आँगन में खेले
हर बालक कान्हा बन जाए|
आओ इंडिया वालो फिर बंशी की धुन सुन मुसकाएँ
मिलकर अपनी भाषा के कुछ गीत मधुर गुनगुनाएं |
आओ ओढ़ें कबीरा की चादर,
मंदिर-मस्जिद के भेद भुलाएँ|
रसखान के गिरिधर नागर संग
मीरा के मन की पीर हरें|
हम गंगा तट के वासी, क्यों सागर से अपनी प्यास बुझाएँ,
अपनी भाषा के परचम को लहरा, क्यों न विश्वगुरु कहलाएँ |
आओ ओढ़ें कबीरा की चादर,
ReplyDeleteमंदिर-मस्जिद के भेद भुलाएं|
रसखान के गिरिधर नागर संग
मरा के मन की पीर हरें|
हम गंगा तट के वासी, क्यों सागर से अपनी प्यास बुझाएं,
अपनी भाषा के परचम को लहरा, क्यों न विश्वगुरु कहलाएं |
खूबसूरत रचना के लिए
कमला जी को बधाई।
कृष्णा वर्मा
हो वेद मन्त्रों से भोर सुहानी मन में गीता का ज्ञान बसे |ममता के आँगन में खेले हर बालक कान्हा बन जाए|
ReplyDeleteहिन्दी का यशोगान करती सुन्दर पंक्तियाँ | बधाई तथा हिन्दी दिवस पर अशेष शुभकामनाएं |
बहुत प्यारी कविता है... कमला जी को इतनी भावपूर्ण रचना के लिए बधाई... हिंदी दिवस की शुभकामनाओं सहित
ReplyDeleteसादर
मंजु
(manukavya.wordpress.com)
बहुत सुंदर व मधुर रचना !
ReplyDelete~हम हिंदवासी ... हिन्दी के मधुर रस अपने दिल में घोलें आओ,
मिलाके सारे सुर-ताल चलो.. दिल से अपनी धुन गुनगुनाएँ आओ....~
Deleteआओ ओढ़ें कबीरा की चादर,
मंदिर-मस्जिद के भेद भुलाएँ|
रसखान के गिरिधर नागर संग
मीरा के मन की पीर हरें|
हम गंगा तट के वासी, क्यों सागर से अपनी प्यास बुझाएँ,
अपनी भाषा के परचम को लहरा, क्यों न विश्वगुरु कहलाएँ |
bahut hi sundar sakaratmak sarthak post
आओ ओढ़ें कबीरा की चादर,
ReplyDeleteमंदिर-मस्जिद के भेद भुलाएँ|
रसखान के गिरिधर नागर संग
मीरा के मन की पीर हरें|...
काश सब मिल के इस को साकार कर सकें ... देश स्वर्ग बन जाए ...
मधुर गीत...
ReplyDeleteभाषा की बगिया में माली बना देवनागरी...हमारी हिन्दी गुलाब बन खिलता ही जाए
हो शपथ और प्रयास हमारा|
शुभकामनाएँ !!
जितनी मिठास हमारी मातृभाषा में है, उतनी ही प्यारी ये पंक्तियाँ भी है...।
ReplyDeleteइस पंक्ति में इंडिया और फिर भारत के प्रयोग ने जैसे बिन बोले ही बहुत कुछ कह दिया...।
आओ इंडिया वालो अब भारत के रंग में रंग जाएँ...
बहुत बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
हो वेद मन्त्रों से भोर सुहानी
ReplyDeleteमन में गीता का ज्ञान बसे |
bahut sundar bhaav ...!!
shubhkamnayen.
बहुत सुन्दर आह्वाहन, इंडिया से भारत की यात्रा...
ReplyDeleteआओ इंडिया वालो अब भारत के रंग में रंग जाएँ
मिलकर अपनी भाषा के कुछ गीत मधुर गुनगुनाएँ |
सार्थक रचना के लिए बधाई.
इंडिया को भारत के रंग में रंगती बहुत प्रभावी रचना है ....
ReplyDeleteहो वेद मन्त्रों से भोर सुहानी
मन में गीता का ज्ञान बसे |............
आओ ओढ़ें कबीरा की चादर,
मंदिर-मस्जिद के भेद भुलाएँ|
रसखान के गिरिधर नागर संग
मीरा के मन की पीर हरें|
हम गंगा तट के वासी, क्यों सागर से अपनी प्यास बुझाएँ,.....सचमुच भावों का सागर हैं आपकी पंक्तियाँ...आत्मा को तृप्त करती ...बधाई
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है कमला जी
आओ इंडिया वालो अब भारत के रंग में रंग जाएँ
मिलकर अपनी भाषा के कुछ गीत मधुर गुनगुनाएँ
सच में इंडिया की संज्ञा में भारत गुम हो गया है. बहुत सुंदर गीत है. बधाई.
सादर,
अमिता कौंडल