मुरलीधर वैष्णव |
मुरलीधर वैष्णव
मैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
प्यार कोई व्यापार नहीं
मैं समझा....................
जब तक भीतर अहं भरा था
दर के बाहर प्यार खड़ा था
घट के पट जब खोल दिये
सब कुछ रोशन अँधियार नहीं
मैंने खोकर जिसको पाया
पारस जो राधा ने पाया
शीश उतारे बैठा हूँ भीतर
कबीरा अब इंतजार नहीं
मैं समझा........
रात चाँदनी जलती देखी
धूप कुँए में छुपती देखी
कहाँ थी तू जब टूटा तारा
इस हिज्र का कोई पार नहीं
मैं समझा..........
मैं टूटा नहीं जब टूटे वादे
तोड़ गई मुझे तेरी यादें
तेरी आहट नींद चुराती रही
तुम बिन प्रिय अभिसार नहीं
मैं समझा..........
मेरी हथेली तेरी लकीरें
क्या बाँचे कोई तकदीरें
तेरी स्मित ही मेरी किस्मत
बाकी कुछ भी सार नहीं
मैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
ये कोई व्यापार नहीं
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प्यार कोई व्यापार नहीं ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletesarthak ...sundar abhivyakti ...
ReplyDeleteshubhkamnayen ...
बहुत ही सुंदर...केवल पाना प्यार नहीं!!
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ReplyDeleteकेवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
प्यार कोई व्यापार नहीं
बहुत सुन्दर सारपूर्ण गीत।
कृष्णा वर्मा
जब तक भीतर अहं भरा था
ReplyDeleteदर के बाहर प्यार खड़ा था
घट के पट जब खोल दिये
सब कुछ रोशन अँधियार नहीं...
Itni gahan abhivykti ki man kuch sochne par vivash ho jaata hai...bahut2 badhai..
बहुत सुन्दर प्यार भरा तराना
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
Wow!! Amazing!! Truely its with a deep meaning...
ReplyDeleteMr.Diwakar
Achchha Geet!
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह दी मुरलीधर जी ने...प्यार व्यापार नहीं, पर आज की पीढ़ी शायद इस भावना को भूलती जा रही है...। मन को छूते गीत के लिए बहुत बधाई...।
ReplyDeleteप्रियंका
प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
ReplyDeleteप्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है
प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए है सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
प्यार कोई व्यापार नहीं
बहुत सुन्दर सारपूर्ण गीत।
प्यार तो बस प्यार है यही सच्चाई है .पर जानते कितने लोग है मालूम नहीं सुंदर भावों से सजा गीत
ReplyDeleteरचना
बहुत सुन्दर गीत. प्यार को परिभाषित करते गहन भाव...
ReplyDeleteमैं समझा कुछ तुम भी समझो
केवल पाना प्यार नहीं
प्यार तो है शृंगार रूह का
ये कोई व्यापार नहीं
शुभकामनाएँ.
सहज सरल भाव ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह कविता.
bahut achcha geet hai
ReplyDeletebahut sundar abhivykti..
ReplyDeleteअति सुन्दर।
ReplyDeleteविष्णुप्रसाद चतुर्वेदी