डॉ०स्वामी श्यामानन्द
सरस्वती
1
जाने मेरा ही जिया ।
इक जीवन के नाम पर
मैं कितने जीवन जिया !
2
कण भर उनसे ॠण लिया
इसे चुकाने के लिए
मैं कितने जीवन जिया !
3
बोल आपके इस तरह
शुद्ध करे है फिटकरी
दूषित जल को जिस तरह ।
-0-
हाइकु
1
मारके ईंट
पूछ रहे हैं लोग-
‘’ लगी तो नहीं?’’
2
तोड़के दिल
कहती है दुनिया-
‘’अब मुस्करा !’’
3
विषैली दृष्टि
पेड़ पर क्या पड़ी
सूख ही गया ।
-0-
ताँका
उसकी पीड़ा
आग
से कम नहीं
उसकी पीड़ा
शब्दों में जब ढली
शब्द जलने लगे ।
-0-
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसादर
अनु
waah bahut badhiya...
ReplyDeleteशब्द वाहक हैं पीड़ा के..
ReplyDeleteशब्द जलने लगे .... बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteसभी रचनाएँ गहन अर्थ लिए हुये
very nice blog...
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सुंदर यथार्थ अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteजाने मेरा ही जिया ।
ReplyDeleteइक जीवन के नाम पर
मैं कितने जीवन जिया
जीवन के अन्दर कितने और जीवन.... सच है... पता नहीं कितने जीवन जीने पड़ते हैं एक ज़िंदगी में.... और कितनी बार मरंद पड़ता है अंतिम मृत्यु से पहले... बहुत ही सुंदर भाव लिए हुये यथार्थपरक रचना..
सादर
मंजु
मारके ईंट
ReplyDeleteपूछ रहे हैं लोग-
‘’ लगी तो नहीं?’’
Sabhi rachnaon men bahut gahari abhivyakti hain man ko chhu gayi...