रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
धोखा दे नेता
लुटती है जनता
ठौर न मिले ।
2
खा गए देश
गरीब बदहाल
कौर न मिले ।
3
हरे न भूख
आँकड़ों का खेल
चिढ़ाता रोज़ ।
4
भोर समीर
परसे जब तन
हरसे मन ।
5
कितनी पीर !
कोकिल हो अधीर
दिल दे चीर ।
6
जीवन -राग
लगता जब दाग़
गूँजे संगीत ।
7
कच्ची कली-सी
कच्ची नींद जो टूटे
सपने रूठे ।
8
जीवन-नैया
तूफ़ानों में जो घिरी
छूटे किनारे ।
9
नहीं कुसूर
हम हैं कोसों दूर
मन के पास
खा गए देश
ReplyDeleteगरीब बदहाल
कौर न मिले ।इसमें कौर का प्रयोग कमाल है
नहीं कुसूर
हम हैं कोसों दूर
मन के पास
भैया सदा ऐसा ही भाव सभी के मन में बना रहे
रचना
बहुत प्रासंगिक और असरदार हाइकु
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत कुछ कहती।
ReplyDeleteसभी हाइकु बहुत अच्छे हैं | इनको पढ़ते हुए जीवन का वो अंश भी दिखाई देने लगा जो हम जानते हुए भी अनदेखा कर देते है या किसी से कहते नहीं |
ReplyDeleteजीवन-नैया
तूफ़ानों में जो घिरी
छूटे किनारे ।
सच ही तो कहा है कि ये जीवन एक नैया है|
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धोखा दे नेता
लुटती है जनता
ठौर न मिले ।
खा गए देश
गरीब बदहाल
कौर न मिले ।
'ठौर' और 'कौर' शब्द का प्रयोग लाजवाब है जो हाइकु को असरदार बना रहा है और उस सच को सामने लाने में कामयाब है जिस की प्रवाह बहुत कम लोग करते हैं |
रामेश्वर जी की कलम को नमन !
हरदीप
धोखा दे नेता
ReplyDeleteलुटती है जनता
ठौर न मिले ।
खो गए देश
गरीब बदहाल
कौर न मिले
असरदार हाइकु । बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुंदर । धन्यवाद ।
ReplyDeleteपूरी दुनिया का सच...
ReplyDeleteहरे न भूख
आँकड़ों का खेल
चिढ़ाता रोज़ ।
सभी हाइकु बहुत अर्थपूर्ण, बधाई.
sabhi hyku bahut hi sundar abhivyakti ! badhai
ReplyDeleteखो गए देश
ReplyDeleteगरीब बदहाल
कौर न मिले ...bahut khub....badhai...