तुमको पाया( चोका )
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
खाक़ थी छानी
वीरानों की हमने
कभी भटके
मोड़ पर अटके
कोई न भाया,
भरी भीड़ में तब
तुमको पाया ।
तुम कहाँ छुपे थे ?
यूँ बरसों से ,
खुशबू बनकर,
दूध-चाँदनी,
कभी भोर का तारा,
नभ-गंगा से
कभी रूप दिखाया ।
किया इशारा
तुम ही थे अपने
अन्तर्मन से
सुख-दु:ख के साथी
प्राणों की ऊष्मा
बनकर के आए
भर गले लगाया ।
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बहुत ही खुबसूरत चोका ......तुमको पाया
ReplyDeleteभाग्यवान हो जो उसको पा लिया है |
नहीं तो आजकी ज़िन्दगी में भीड़ में खो जाने का ही डर बना रहता है !
सुन्दर चोका के लिए बधाई !
हरदीप
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर कोमल अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut khoobsurat choka. man ki gahraaiyon mein na jaane kitna kuchh ankaha rahta hai aur waqt aane par ek bimb ke roop mein vyakt hota hai...
ReplyDeleteतुम कहाँ छुपे थे ?
यूँ बरसों से ,
खुशबू बनकर,
दूध-चाँदनी,
कभी भोर का तारा,
नभ-गंगा से
कभी रूप दिखाया ।
bahut shubhkaamnaayen.
Bahut apntav se paripurn choka...bahut2 badhai.
ReplyDeleteखाक़ थी छानी
ReplyDeleteवीरानों की हमने
कभी भटके
मोड़ पर अटके
कोई न भाया,
भरी भीड़ में तब
तुमको पाया ।
बहुत सुंदर रचना है बधाई,
सादर,
अमिता कौंडल