-रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु’
बहुत हैं बादल
घिरे अन्धेरे
उदास न होना
तुम चाँद मेरे।
आशा रखोगे
बादल छँटेंगे
दु:ख भी घटेंगे
होंगे सवेरे ।
-0-
अकेली छुअन
भिगो देगी मन
सींचेगी प्राण
द्वारे तुम्हारे ।
तेरा दु:ख सहूँ
मैं किससे कहूँ-
‘दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे।”
लहरें तरसतीं
तट को परसतीं
ग्रहण लगा चाँद
सागर निहारे ।
-0-
आशा रखोगे
ReplyDeleteबादल छँटेंगे
दु:ख भी घटेंगे
होंगे सवेरे ।
सकारात्मक भावपूर्ण रचना|
jeevan se bahut kareeb ...bahut sunder abhivyakti ....
ReplyDeleteतेरा दु:ख सहूँ
ReplyDeleteमैं किससे कहूँ-
‘दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे।”waah.....
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ...
ReplyDeleteलहरें तरसतीं
ReplyDeleteतट को परसती
ग्रहण लगा चाँद
kamal ka bimb hai ek dam naya .isko ham chura lete hain theek hai na
rachana
तेरा दु:ख सहूँ
ReplyDeleteमैं किससे कहूँ-
‘दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे।”...bahut hi sundar.....
सबेरे आयेंगे, हर रोज..
ReplyDeleteसुन्दर उद्गार..
अकेली छुअन
ReplyDeleteभिगो देगी मन
सींचेगी प्राण
‘दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे
अद्भुत ... मन को कहीं गहरे तक छू जाती हैं ये पंक्तियाँ...
सादर
मंजु
Bahut apnatv se bhav bhari rachna bahut gambheer hai ...bahut2 badhai...
ReplyDeleteलहरें तरसतीं
ReplyDeleteतट को परसतीं
ग्रहण लगा चाँद
सागर निहारे ...
लाजवाब .... गज़ब के बिम्ब से सजाया है इस रचना को ... बहुत कमाल की रचना है ...
तेरा दु:ख सहूँ
ReplyDeleteमैं किससे कहूँ-
‘दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे।”.............
लाजवाब .....कितना अपनापन है इन शब्दों में
दिल को छू गई आपकी ये रचना !
हरदीप
khud par yakeen rakhne ke liye prerit karte bhaav...
ReplyDeleteबहुत हैं बादल
घिरे अन्धेरे
उदास न होना
तुम चाँद मेरे।
achchhi rachna ke liye badhai.