रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
नेताजी को चुनाव लड़ना था। जनता पर उनका अच्छा प्रभाव न था। इसके लिए वे मुखौटा बेचने वाले की दूकान में गए। दूकानदार ने भालू, शेर, भेडिए,साधु–संन्यासी के मुखौटे उसके चेहरे पर लगाकर देखे। कोई भी मुखौटा फिट नहीं बैठा। दूकानदार और नेताजी दोनों ही परेशान।
दूकानदार को एकाएक ख्याल आया। भीतर की अँधेरी कोठरी में एक मुखौटा बरसों से उपेक्षित पड़ा था। वह मुखौटा नेताजी के चेहरे पर एकदम फिट आ गया। उसे लगाकर वे सीधे चुनाव–क्षेत्र में चले गए।
परिणाम घोषित हुआ। नेताजी भारी बहुमत से जीत गए। उन्होंने मुखौटा उतारकर देखा। वे स्वयं भी चौंक उठे–वह इलाके के प्रसिद्ध डाकू का मुखौटा था।
बडा गहरा कटाक्ष है।
ReplyDeleteडाकू का महिमामंडन....
ReplyDeleteसटीक बात!
ReplyDeleteप्रभावी लघुकथा!
सटीक व्यंग्य्।
ReplyDeleteगहन कटाक्ष
ReplyDeleteसटीक व सुपरिचित व्यंग्ंय ।
ReplyDeleteप्रभावशाली लघुकथा
ReplyDeletebhut khub.
ReplyDeleteबड़ा अच्छा कटाक्ष किया है आपने लघुकथा के माध्यम से...शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteओह तीक्ष्ण कटाक्ष... कुछ इसी भाव की रचना
ReplyDeleteयहाँ पढ़ें
नेता पर सही कटाक्ष
Deleteलाजवाब लेखन
ReplyDeleteआज के राजनीतिक माहौल का सटीक चित्रण
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