एक उदास लड़की के लिए
छाया:रोहित काम्बोज |
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
आँधी आई धूल उड़ाती
पेड़ों के कान मरोड़ती ,
उन पेड़ों के
जो धरती की छाती पर
पैर रखकर बरसों से खड़े थे
धरती में बहुत गहरे गड़े थे,
डालियाँ झकझोरतीं
टहनियों की बाहें मरोड़ती ;
पेड़ कराह उठे
कुछ जड़ से उखड़ गए
कुछ की डालियाँ झूल उठी
टूट गईं
कुछ की नई टहनियाँ
कुछ ही झोकों में रूठ गईं
देखते ही देखते
हरे -भरे उपवन उजड़ गए।
पत्ते -
कुछ झोंको में झड़ गए ,
नन्हीं -सी घास
आँधी की मार से हर बार
झोंकों के सामने सिर झुका लेती
तूफ़ान टकराता
साँड की तरह डकराता
लाल -लाल आँखे किए
धूल के गुबार उड़ाता
घास मुस्कराती,
बार -बार लचक जाती
अन्धड़ हो जाता पसीने -पसीने
और वह नन्हीं -सी निमाणी -सी घास
ज़मीन की सतह तक झुककर भी
छाया:रोहित काम्बोज |
तूफ़ान के गुज़र जाते ही
उठकर खड़ी हो जाती
इस तरह
वह नन्हीं-सी निमाणी -सी घास
बड़े -बड़े दरख्तों से
बड़ी हो जाती ।
तूफ़ान के थमते ही
आ जाती नन्हीं -सी गिलहरी
पा जाती कुछ दाना-पानी ;
खिड़की के पास बैठी
गूगल से साभार |
उदास लड़की
देखती यह सब एकटक
उदासी की धूल झाड़कर
हौले से मुस्करा देती
सुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
-0-
बहुत ही सुन्दर कविता.. बहुत दिनों के बाद कुछ बहुत अच्छा सा पढ़ने को मिला... शब्द, भाव, और रवानी... सब का इतना सुन्दर संगम है इस कविता में कि पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया. बहुत सुन्दर सन्देश दिया है अपने इस कविता के माध्यम से .. सदा तने रहना ही काम नहीं आता.. जीवन में यथा-स्थान लचकीला भी होना पड़ता है. तभी तो नन्ही निमाणी सी दूब का भयंकर आंधी कुछ नहीं बिगाड़ पाई..
ReplyDeleteसादर
मंजु
हौले से मुस्करा देती
ReplyDeleteसुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
bhaiya ye sunder bhavon se bhari mohak pamktiyan hai puri kavita me bhav bahut hi sunder hain
saader
rachana
bahut hi sundar ....really nice
ReplyDeleteआदरणीय रामेश्वर जी,
ReplyDeleteयह कविता ही नहीं ये तो जिन्दगी है | तूफ़ान जब आता है जिन्दगी में सब कुछ तबाह कर देता है ...लेकिन आशा कहीं न कहीं जिन्दा रहती है ...नन्हीं घास के रूप में | सही मार्ग दिखाया है आपने एक उदास लड़की को ......जो चाहते हुए भी पहले हौसला बटोर नहीं पा रही थी | लेकिन घास को देखने और समझने की क्षमता इस कविता में साफ झलकती है | जिन्दगी का आईना धुंधला पड़ जाता है , जिसे समय समय पर अगर साफ न किया जाए तो हौसला बिखर जाता है | ये आईना इस कविता ने साफ कर दिया ....जीने की चाह लिए हुए ये कविता लिखने वाली कलम को शत-शत नमन !
हरदीप
खिड़की के पास बैठी
ReplyDeleteउदास लड़की
देखती यह सब एकटक
उदासी की धूल झाड़कर
हौले से मुस्करा देती
सुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
उदासी की धूल - एकदम नया प्रयोग और बहुत खूबसूरत प्रयोग है बहुत पंसद आया। रचना के भाव बहुत अच्छे लगे इतनी प्यारी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ...
Rameshvar ji aapki kavita bahut khoobsoorat hai...ek bachhi kee bhavnaein aur positivity kamal ki hai.
ReplyDeleteउदास लड़की
देखती यह सब एकटक
उदासी की धूल झाड़कर
हौले से मुस्करा देती
सुबह की दूब पर बिखरी
निश्चय ही उदासी दूर होगी..
ReplyDeleteखिड़की के पास बैठी
ReplyDeleteउदास लड़की
देखती यह सब एकटक
उदासी की धूल झाड़कर
हौले से मुस्करा देती
सुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
बहुत सुन्दर नए प्रतीकों से सजी सार्थक पोस्ट...नन्हीं घास ,गिलहरी,ओस और उदास लड़की इन का बहुत सुन्दर समन्वय हुआ है ....बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ....
डा. रमा द्विवेदी
ज़िंदगी को कहती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेजोड़ रचना
ReplyDeleteब्लॉग तक पहुंच ही गई. पढा.देखा यह तो मैं हूँ......... खिडकी के उस पार बैठी उदास लड़की.जो नही जानती कि वो उदास क्यूँ है???अपने भीतर उगी नन्ही घास को देखती है कभी....... उन काँटों को जो बिखरे है हर किसी के भीतर.उनको कोई नही छेड़ता.हर कोई पैरों के तले दबा देता है कोमल घास को हा हा हा कहती है 'तुम नही बदल सकते खुद को तो क्यों बदल दूँ मैं अपने आपको.
ReplyDeleteसचमुच बहुत पहले पढ़ी दरख्त और घास की यह वक्ताव्य को काव्य रूप मे और उदास लड़की के माध्यम से आपने बहुत अच्छा लिखा है.
आपने सुन्दर शब्दों और ख़ूबसूरत चित्रों के साथ भावपूर्ण रचना लिखा है जिसकी तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पर गए! अद्भुत सुन्दर प्रस्तुती! बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteBahut,bahut sundar rachana!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव सजे हैं इस कविता में-वह छोटी उदास लड़की प्रकृति की उपमाओ के साथ घुल मिल गई है,घास और गिलहरी की फोटो बहुत सुन्दर है...बधाई|
ReplyDeletejhuk jane wala sada sukoon pata hai. ye udas ladki bhi us ghaas ko dekh shayad sukoon dhoond le.
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteएक ऐसी कविता जिसमें जीवन के संघर्ष की भी गूंज सुनाई पड़ती है। तूफान आते हैं और चले भी जाते हैं, तबाही के निशान छोड़कर पर जीवन कहां थमता है… बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएं...अल्लाह करे और हो जोर-ए-कलम ज्यादा...
अब तो आपके ब्लॉग को बराबर देखना होगा!
उदासी की धूल झाड़कर
ReplyDeleteहौले से मुस्करा देती
सुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
यह मुस्कराहट ही उसकी संजीवनी है!
ज़िंदगी को कहती अच्छी प्रस्तुति....सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteघास मुस्कराती,
ReplyDeleteबार -बार लचक जाती.हमें घास से सीख लेनी चाहिये।बहुत अच्छी प्रस्तुति।धन्यवाद।
bhaaw purn rachna....
ReplyDeleteYour thoughts are reflection of mass people. We invite you to write on our National News Portal. email us
ReplyDeleteEmail us : editor@spiritofjournalism.com,
Website : www.spiritofjournalism.com
जीवन संघर्ष में जो धैर्य और सदा नीमे रहने का जो गुण है और वही गुण जीवन की सफलता का मार्ग भी है और कारण भी है उसी गुण को भाईसाहब आपने इस कविता में प्रकृति के जरिये बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है. बहुत ही सुंदर कविता है. सुंदर सन्देश देती हुई. बधाई.........
ReplyDeleteसादर,
अमिता कौंडल
हौले से मुस्करा देती
ReplyDeleteसुबह की दूब पर बिखरी
ओस की तरह !
आशा जगाती एक भावपूर्ण, सुन्दर कविता...। बहुत बधाई...।
udaas ladki jo jivan ki saakshi hai, aandhi toofaan ko jhelti hui shaant baithi hai, aur fir aandhi ke gujarne ke baad muskuraati hai...jaanti hai aandhi hai jise gujarna hin hai, prakriti ka niyam jivan chalna hin hai...sandeshprad rachna, shubhkaamnaayen.
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