-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
अमृत बाँट
आँसू की गठरिया
सिर पे ढोई
2
उगाते देख
उनको नागफनी
तुम थी रोई
3
वाणी के शर
पल-पल तुझको
रहे बींधते
4
भीष्म से ज़्यादा
घायल होकर तू
कभी न सोई
5
सबसे भारी
दु:ख तेरा बेधक
रहा रुलाता
6
बीते पहर
अभिशापों की नई
कथा सँजोई
बीते पहर
ReplyDeleteअभिशापों की नई
कथा सँजोई
बहुत ही प्रभावशाली..
बहुत ही प्रभावशाली..
ReplyDelete4
ReplyDeleteभीष्म से ज़्यादा
घायल होकर तू
कभी न सोई
रामेश्वर जी
दिल की क्यारी को शब्दों से आपन्ने सीचा है
madhu tripathi MM
tripathi873@gmail.com
http://kavyachitra.blogspotcom
प्रभावशाली!
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