1 जिन्दगी
जिन्दगी होती जो गीत
तो गुनागुना लेती मैं
बिना साजो के भी
राग बना लेती मै
शब्दों का हाथ थाम
भावों के संग चल देती मैं
क्या जानती थी कि
जिन्दगी सुरों का संगम नहीं
जंग है ये परिस्थितियों की
इसी लिए संघर्ष की ताल ले
जिन्दगी के कटु घरातल पर
थिरका करती हूँ मैं ।
2 ‘’शर्म’’
शर्म नहीं आती
बीस बरस की हो
और
अब भी गुब्बारे खरीद, खेलती हो ।
आती है शर्म
देख
उम्र है जिनकी खेलने की
वो
बेचा करते हैं गुब्बारे ।
3 प्रवाह
नई मुलाकात ने
दी दस्तक
जीवन प्रवाह की
धारा तो बहती है
खामोश कहती है
थाम लो हाथ मुसाफिरों
मै
रुख बदलने को हूँ।
-0-
जीवन प्रवाह की
धारा तो बहती है
खामोश कहती है
थाम लो हाथ मुसाफिरों
मै
रुख बदलने को हूँ।
-0-
सुन्दर कविताएं.....
ReplyDeleteकठिनाई में उत्साह बनाये रखना ही जीवन है।
ReplyDeleteसभी क्षणिकायों का शब्दों के साथ अद्भुत तालमेल .....
ReplyDeleteआपकी क्षणिकाएं इस बात को दर्शाती हैं कि प्रस्तुति का विषय भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteक्या जानती थी कि
ReplyDeleteजिन्दगी सुरों का संगम नहीं
जंग है ये परिस्थितियों की.
भावपूर्ण रचनायें।
sundar rachnaaye...
ReplyDeletebahut sunder rachnayen badhai........
ReplyDeleteकम शब्दों में रचा गया सम्पूर्ण कवित्त...लाजवाब
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना ......
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