रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जब मैं रुका
सोचकर अकेला
कि कौन मेरा?
तभी आवाज़ आई
‘इस जग में
है मेरा भी तो कोई
जो बिना बोले
मन की किताब का
हर आखर
साफ़ बाँच लेता है
किसी कोने में
दुबक जाए दु:ख
जाँच लेता है ।
उसका नेह-स्पर्श
टूटती साँस
हृदय की प्यास को
देता जीवन
यह अपनापन
बनता धड़कन।’
-0-
sahi kaha hai vo hi apna.
ReplyDeleteसार्थक...और सटीक कहा आपने....
ReplyDeleteजब मैं रुका
ReplyDeleteसोचकर अकेला
कि कौन मेरा?
तभी आवाज़ आई
‘इस जग में
है मेरा भी तो कोई
jab na tab aise khayaal hum sabko aate aur tab hin achaanak ye bhi yaad aa jata ki kaun kaun hai mera apnaa jo...
सका नेह-स्पर्श
टूटती साँस
हृदय की प्यास को
देता जीवन
यह अपनापन
बनता धड़कन।’
bahut sundar bhaavmay choka ke liye badhai Kamboj bhai.
निराशा के पलों की एकदम सही अभिव्यक्ति है...सुन्दर चोका के लिए बधाई|
ReplyDeleteसादर
ऋता
बहुत खूब निभाया है आपने इस चौका गीत को। हर पंक्ति एक दूजे से भाव अर्थ से जुड़ी हुई और पूरे चौका गीत के केन्द्रीय भाव को रेखांकित करती हुई। बहुत खूब !
ReplyDeleteसंग रहता है सदा वह।
ReplyDeletebahut hi acha
ReplyDeleteBahut sundar choka.
ReplyDeleteYeh apne logon ka apna pan hi hai ,jo tootti hui saason ko jeevan de deta hai.
Regards.
man ke baav agar padh liye jayen vahi sachhi mitrtta hai ...
ReplyDeleteकिसी कोने में
दुबक जाए दु:ख
जाँच लेता है । bahut sundar bhav...dukh ki seema ko bayan karte..
बहुत सच्ची बात कही आपने रामेश्वर जी. सुभाष नीरव जी ने सही कहा हर पंक्ति एक दूजे से भाव अर्थ से जुड़ी हुई है. शब्दों और भावोँ के बीच अनोखा तारतम्य है, जो रचना को बहुत सुन्दर बनाता है.
ReplyDeleteमन की किताब का
हर आखर
साफ़ बाँच लेता है
किसी कोने में
दुबक जाए दु:ख
जाँच लेता है ।
यह पंक्तियाँ तो अद्भुत लगीं ...अपनेपन के मापदंड की ऐसी सुन्दर व्याख्या के लिए बस एक ही शब्द है - अद्वितीय. .
मन की बात
बिना कहे समझ
जाएँ , वो दोस्त
सुख में हों न हों
पर दुःख में जरूर
साथ खड़े जो सदा
वो दोस्त
अच्छे या बुरे की
विवेचना किये बगैर
बस आगे बढ़ कर
हाथ थाम लें
वो दोस्त
हर मुश्किल दौर में
बेगरज़ साथ चलें
जब तक बुरे वक़्त की
सियाही न छंट जाये
वो दोस्त
सादर
मंजु
जब मैं रुका
ReplyDeleteसोचकर अकेला
कि कौन मेरा?
तभी आवाज़ आई
‘इस जग में
है मेरा भी तो कोई
aapne jo kaha stya kaha aapka jag me ek haiku sansar hai jisme apne bahut se haikukar banaye hain sab hain sath
chonka ki har khasiyat pr khara utarta hai aap ka ye chonka .asan nahi hai bhav se na hatte huye chonka likhana
saader
rachana
रामेश्वर जी ,
ReplyDeleteआखर -आखर सही .... मन की सुंदर व्याख्या ......
कुछ मिलता - जुलता कहना चाहती हूँ .....आपकी कलम में ऐसी शक्ति है कि मैं ब्यान नहीं कर सकती ....हाँ एक चोका जरुर लिख दिया आपका चोका पढ़कर .....
ओ मन मेरे
तुझे लगता है तू
अकेला राही
इस जग त्रिंजण
मगर ऐसा
होता नहीं पगले
कोई न कोई
बैठा मन त्रिंजण
बिन बोले ही
पढ़ता तेरा मन
दिल तरंगें
ज्यों उसके भावों की
आ मिलें जब
तेरे ह्रदय उठीं
शोर मचाती
बिखरीं -लहरों से
मिलता है सुकून !
हरदीप
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteक्या खूब चोका है...वाह !
ReplyDelete