-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
ईर्ष्या का कुण्ड
लील गया सारी ही
सद्भावनाएँ ।
होम कर दी
हैं शुभकामनाएँ
प्यारी ॠचाएँ ।
दे दी आहुति
वाणी के संयम की
दो ही पल में,
पिला दिया ज्यों
दूध , मिलाकर के
हलाहल में;
घृणा का घृत
निर्मम चषक में
भर ही लाए ।
यज्ञ किया है
किस सुख के लिए ?
नहीं है पता,
मरता मन
शाप देकर और
करता ख़ता ;
उठेगा धूम -
गीली जो समिधाएँ
संग हवाएँ ।
अशुद्ध मन्त्र-
कुसमय का पाठ
भारी पड़ता,
दुख ही देगा
भूल -शूल चुभके
जब गड़ता;
मन -अश्व को
न रोकती बल्गाएँ
न वर्जनाएँ ।
आग लहकी
पुरोहित झुलसे
यजमान भी
नफ़रतों ने
भस्मीभूत किए हैं
सामगान भी
अहित सोच
जीवित रह पाती
न प्रार्थनाएँ ।
geet si lay hai haiku ke niyam hai aapke shabd hai .bhavnaon ki udan hai aur kya chahiye kisi pathak ko gadgad hone ke liye sunder ati sunder
ReplyDeletesaader
rachana
अद्भुत प्रयोग...हाईकु के माध्यम से गीत संरचना का...बधाई.
ReplyDeleteअच्छा है गीत। दो-दो हाइकु के बन्द बनाकर गीत की तकनीक का निर्वाह अच्छा बन पड़ा है। भाव तो हैं ही, वैचारिक स्तर पर भी भरपूर ऊर्जा है इस गीत में।
ReplyDeleteविषय अच्छा है..ईर्ष्या और नफ़रत से बुरी कोइ चीज नहीं होती..सभी हाइकु बहुत अच्छे हैं|इस विषय पर मेरे भी दो हाइकु...
ReplyDeleteअकारण ही/उपजती है ईर्ष्या/जड़ से काटें
ईर्ष्या-अग्नि में/दूसरों को जलाते/स्वयं जलते
सादर
ऋता
home kar dii -haiku geet eak gahan abhivayakti hai
ReplyDeleteनफ़रतों ने
भस्मीभूत किए हैं
सामगान भी
अहित सोच
जीवित रह पाती
न प्रार्थनाएँ
ekadm sach ki chasni men page hain haiku....kisi ka ahit soch bahla hua kabhi kisi ..nahi kabhi bhi nahi...gahre chintan ke liye hardik shubkamnayen..
रामेश्वर जी ,
ReplyDeleteहोम कर दी हाइकु गीत साहित्य का उत्तम नमूना है | बहुत ही गहरे विचार .....दुनिया के सच को उजागर करते हुए हाइकु ......ऐसे शब्दों में बाँधना तो कोई रामेश्वर जी से सीखे !
ऐसी कलम को झुककर सलाम !
हरदीप
अहित सोच
ReplyDeleteजीवित रह पाती
न प्रार्थनाएँ ।
गहरे भाव लिए सभी हाइकु बहुत अच्छे लगे..आपकी हर रचना अच्छी सीख दे जाती है..हार्दिक शुभकामनाएँ|
सादर
ऋता
जीवन यज्ञ में न जाने कितनी आहुतियाँ दी जानी हैं।
ReplyDeleteवास्तव में भूल शूल बनकर चुभता है
ReplyDeleteउससे बचने का कोई उपाय नही
अच्छी प्रस्तुती।मेरे ब्लाँग पर आने
के लिये धन्यवाद।
आपने नवीन प्रयोग करके एक नयी विधा को जन्म दिया है. बहुत की अच्छा तथा सुंदर हाइकु गीत है. अन्य रचनाकार भी इसका अनुसरण करेंगे.
ReplyDeleteउमेश मोहन धवन
कानपुर
ईर्ष्या का कुण्ड
ReplyDeleteलील गया सारी ही
सद्भावनाएँ ।
अहित सोच
जीवित रह पाती
न प्रार्थनाएँ ।
क्या क्या बात । क्या खूब कहते हैं । संवेदना के सभी तार झंकृत कर दिये । गहन सोच ।धन्यवाद अभिव्यक्ति को जिस के जरिए मैं आप तक पंहुची ।धन्यवाद उमेश महादोशी जी को ।
मैं पहले क्यों अन्जान थी।
बधाई
sabhi haaiku bahut sundar. geet ke roop mein bahut achchhe lage haaiku. gahre bhaav, prerak shabd aur shikshaprad vichaar. bahut badhaai aur shubhkaamnaayen Kamboj bhai.
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