रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
डरी–डरी आँखों में
तिरते अनगिन आँसू
इनको पोंछो
वरना जग जल जाएगा ।
2
उम्र तमाम
कर दी हमने
रेतीले रिश्तों के नाम ।
3
औरत की कथा
हर आँगन में
तुलसी चौरे–सी
सींची जाती रही व्यथा ।
4
स्मृति तुम्हारी-
हवा जैसे भोर की
अनछुई , कुँआरी ।
5
माना कि
झुलस जाएँगे हम,
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम ।
-0-
बहुत ही बढ़िया,
ReplyDeleteसाभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपकी ये क्षणिकायें बढ़िया लगी। अन्तिम क्षणिका में जो आत्मविश्वास है, वह अब कहाँ दीखता है ! बेहतर आदमी के लिए बेहतर दुनिया बनाने/संजोने का यह आत्म विश्वास आदमी में मरना नहीं चाहिए।
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएं.
ReplyDeleteहर क्षणिका गहन भाव लिए हुए
ReplyDeleteWaah ! Bahut hi sundar sir.
ReplyDeleteउत्तम
ReplyDeleteमाना कि
ReplyDeleteझुलस जाएँगे हम
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम ।
-0-bahut shaandaar chandikayen badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks
उम्र तमाम
ReplyDeleteकर दी हमने
रेतीले रिश्तों के नाम ।
3
औरत की कथा
हर आँगन में
तुलसी चौरे–सी
सींची जाती रही व्यथा ।
बहुत सुन्दर क्षणिकायें हैं बधाई।
डरी–डरी आँखों में
ReplyDeleteतिरते अनगिन आँसू
इनको पोछो
वरना जग जल जाएगा
bhaiya ek kavya likha ja sakta hai itne gahre bhav hain
स्मृति तुम्हारी
हवा जैसे भोर की
अनछुई , कुँआरी ।
bahut sunder
badhai
saader
rachana
सुंदर क्षणिकाएं....
ReplyDeleteउम्र तमाम
कर दी हमने
रेतीले रिश्तों के नाम ।
कोई गम नहीं
रेतीले ही सही
वो रिश्ते तो हैं ....
हम अकेले नहीं
नाम के ही सही
वो रिश्ते तो हैं .....
उम्र भर प्यार
दिया है जिनको
वो रिश्ते तो हैं .....
प्यार आँचल में
भीग जाएँगे जब
ये रेतीले रिश्ते .....
प्यार ही प्यार
बरसाएँगे ये
रेतीले रिश्ते !
माना कि
ReplyDeleteझुलस जाएँगे हम,
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम ।
ye to bhav to bahut pasnd aaye kaash aisa hi sab soch paate to asafal jahghon par bhi saflta unke kadm chumti...bahut2 badhai itne aatmvishvash ke liye...