रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’
है हमारी कामना
यही पावन भावना ।
दु:ख कभी न पास आएँ
अधर सदा मुसकुराएँ
खिल जाएँ सभी कलियाँ
महक उठे मन की गलियाँ
हृदय जब हो जाए दुर्बल
बन जाना तू ही सम्बल
हाथ आकर थामना
है हमारी कामना ।
कौन अपना या पराया
मन कभी न जान पाया
यह मेरा वह भी मेरा
साँझ अपनी व सवेरा
बाँट दो दुख कम कर लो
सुख द्वारे पर यूँ धर लो
सुखों से हो सामना
है हमारी कामना ।
-0-
रमेश्वर जी,
ReplyDeleteवह क्या लिखा है
सुन्दर सन्देश देती कविता.....
कुछ आगे हम कह देतें हैं.....
दिल हमारा
करे ऐसी कामना
खिलते रहें
खुशियों के ही फ़ूल
हर गली में
तेरे मेरे आँगना
फ़िर रब से
क्या है और माँगना
मिल ही गया
मोतियों का खजाना
ऐसी पावन
दिल की ये भावना
हरदीप
बाँट दो दुख कम कर लो
ReplyDeleteसुख द्वारे पर यूँ धर लो
सुखों से हो सामना
है हमारी कामना ।
बहुत सुन्दर कामना है सार्थक भाइचारे का सन्देश दिया है । आगर इसकी लौ सब तक पहुँचे तो दुनिया एक हो जाये। धन्यवाद आपका।
हरदीप जी आपने सही लिखा है मुझे भी बस यही कहना है
ReplyDeleteऐसी पावन अराधना
सुंदर मन की भावना
कलयुग में करता है कौन
आपके जैसी कामना
आपके इस सुंदर आशीष के लिए धन्यवाद
सादर
रचना
अच्छी कविता
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज जी को भी ऐसी ही शुभकामना...सोने पर सुहागा हरदीप जी की कविता...।
ReplyDeleteइसे ही शायद कहते हैं उम्मीद से दुगुना मिलना...।
सादर,
प्रियंका
एक सार्थक प्रार्थना !
ReplyDeleteकौन अपना या पराया मन कभी न जान पाया यह मेरा वह भी मेरासाँझ अपनी व सवेराबाँट दो दुख कम कर लोसुख द्वारे पर यूँ धर लो
ReplyDeleteकौन अपना या पराया मन कभी न जान पाया यह मेरा वह भी मेरासाँझ अपनी व सवेराबाँट दो दुख कम कर लोसुख द्वारे पर यूँ धर लो
कौन अपना या पराया मन कभी न जान पाया यह मेरा वह भी मेरासाँझ अपनी व सवेराबाँट दो दुख कम कर लोसुख द्वारे पर यूँ धर लो
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...सशक्त भाव
Aabhar...
ReplyDeletesundar, pyari...dil se likhi gai kavitaa....
ReplyDeleteभाई साहब, आपकी इस पावन भावना को नमन ! ऐसी कामना हर प्राणी यदि करे तो क्या बात है, दुनिया ही बदल जाए !
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कौन अपना या पराया
ReplyDeleteमन कभी न जान पाया
यह मेरा वह भी मेरा
साँझ अपनी व सवेरा...
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
shabdon ke sath pavan bhavnaon ka pravah man ko sukhad ahsas deta hua sunder laga . shrahniy rachana .sadhvad ji .
ReplyDeleteसद्भाभानाओं से ओत-प्रोत सुन्दर कामना!
ReplyDeleteसुन्दर कामना .......आमीन !
ReplyDeletebahut sunder kamna ....!!
ReplyDeleteprabhu sada sahay rahen .
एक सशक्त और बेहतरीन रचना...और हो भी क्यों ना...इतनी सुंदर कामना जो है....काश सभी ऐसा सोचें...
ReplyDeleteaapki rachnayein behtarin aur prenaspad hain. aap isi tarh likhte rahein
ReplyDeleteहृदय जब हो जाए दुर्बल
ReplyDeleteबन जाना तू ही सम्बल
हाथ आकर थामना
है हमारी कामना ।
ati uttam, prerak, sandeshprad aur saarthak rachna. bahut bahut shubhkaamnaayen kamboj bhai.
Bhut sunder !aabhar !
ReplyDeleteकौन अपना या पराया
ReplyDeleteमन कभी न जान पाया
यह मेरा वह भी मेरा
साँझ अपनी व सवेरा
बाँट दो दुख कम कर लो
सुख द्वारे पर यूँ धर लो
बहुत सुंदर कविता है
सादर
अमिता