पथ के साथी

Monday, March 28, 2011

जाएँगे हम


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
वश जो चले
चाहेगा कौन जीना
ज़हर पीना
2
जीवन-वन
भटकता ही रहा
चोटिल मन
3
सारे वसन्त
ले गया घर-द्वार
मिली दुत्कार
4
जाने नहीं ये
पाषाण का नगर
घाव हैं कहाँ?
5
अभागे हम
झुलसने पर भी
न भागे हम
6
मौत ने नहीं
अपनों ने सदा ही
मारा मुझको
7









अमृत-घट
जो पिलाने थे आए 
सभी लौटाए
8
ज़ुबान खोलें
जमा जितना विष
मन में घोलें
9
जाएँगे हम
ढूँढ़ो जो रोकर भी
लौटेंगे नहीं
10
ढूँढ़ा था घर
मिला था काँटों का
हमें बिस्तर
-0-


10 comments:

  1. बहुत गहराई से ह्रदय की व्यथा को उकेरा है... सभी हाइकू कड़वी सच्चाई को बयान करते हुये. सही कहा आपने "मौत ने नहीं / अपनों ने सदा ही / मारा मुझको" मौत की मार से कहीं जादा गहरी मार होती है जो अपनों से मिलती है.

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  2. man ki vyathaa bahut khoobsurti se shabdon mein bikhra hai, sabhi haaiku bahut umda, badhai bhaisahab.

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  3. kitna darad kitni pida hai sabhi haikuaon me .pr ek ek shabd sachchha hai .darad se mera kuchh ajeeb nata hai shayad isiliye mujhe ye bahut hi gahre tak chhu gaye.
    bahut sunder badhai
    saader
    rachana

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  4. डा. रमा द्विवेदी .....


    हिमांशु जी,
    सभी हाइकु बहुत ही मार्मिक हैं ..एक से बढ़ कर एक ......साधुवाद ...

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  5. हिमांशु जी, हर हाइकु ने मन को खींचा है। हाइकु में इतनी उम्दा अभिव्यक्ति आप कर रहे हैं,जो मुझ जैसे नौसिखियों के लिए प्रेरणा बन रही है।

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  6. हर हाइकु बहुत ही गहरी बात कहता हुआ ...
    मन को छू गया हर हाइकु ....
    जाएँगे हम
    ढूँढ़ो रोकर भी, न
    आएँगे हम
    क्या ऐसा लिख सकते हैं इस हाइकु को ....
    जाएँगे हम
    ढूँढ़ो जो रोकर भी
    न लौटें हम

    हरदीप

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  7. थोड़ा सा जल पर अतीव गहराई । लगता है विरोधावास । पर यह सच है हिमांशु जी के हाइकु का और यह भी सच है कि इस कला में पारंगत होने के साथ -साथ वे दूसरों का उत्साह बढ़ाने में भी पीछे नहीं रहते।
    सुधा भार्गव

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  8. हरदीप जी! आपके सुझाव के अनुसार कुछ परिवर्तन कर दिया गया है ।

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  9. सारे हाइकु बहुत प्यारे हैं...। खासतौर से-
    जाएँगे हम
    ढूँढ़ो जो रोकर भी
    लौटेंगे नहीं
    यह हाइकु मन को गहरे तक बेध गया...। जो जा चुके हैं, उन अपनों की याद अनायास ही दिला गया...।

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