जीवन की इस कर्मभूमि में ठीक नहीं है बैठे रहना रुक कर पानी सड़ जाता है नदी सरीखे निशदिन बहना जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम.... बहुत पुराना गीत याद आ गया आपकी यह रचना पढ़कर.. अत्यन्त प्रभावशाली रचना
जीवन की इस कर्मभूमि में
ReplyDeleteठीक नहीं है बैठे रहना
रुक कर पानी सड़ जाता है
नदी सरीखे निशदिन बहना
जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम.... बहुत पुराना गीत याद आ गया आपकी यह रचना पढ़कर.. अत्यन्त प्रभावशाली रचना