पथ के साथी

Sunday, August 10, 2025

1478- आपका होना

 डॉ. पूनम चौधरी

( बहन की पाती भाई के नाम)

 

भैया,

 आपका मिलना

मानो आकाश ने स्वयं मेरी जीवन-भूमि पर

आपके रूप में एक आशीर्वाद उतारा हो—

ऐसा आशीर्वाद,

जिसकी छाया में ऋतुएँ बदलती रहेंगी,

सदैव संतुलन,आनंद और विश्वास के साथ।

 

आपका होना-

सिर्फ़ एक सम्बन्ध का नाम नहीं,

एक विशाल वृक्ष है—

जिसकी छाँव में मेरी थकान शांति पाती है,

और जिसकी गहरी जड़ों से

मेरे अस्तित्व को पोषण मिलता है।

 

आप मेरे गुरु हैं;

क्योंकि आपकी दृष्टि में

मेरे लिए सदैव एक दीपक जलता है—

जो अंधकार को पहचानता भी है

और उसे विलीन भी कर देता है।

 

आपमें मैं पिता को देखती हूँ;

क्योंकि आपके शब्दों की दृढ़ता

मेरे मन की टूटी हुई शाखाओं को

हर बार फिर से हरा कर देती है,

और भय के क्षणों में

मुझे स्थिर खड़े रहने का सामर्थ्य देती है।

 

आप मेरे भाई हैं,

क्योंकि आपके स्नेह की ऊष्मा

मेरे भीतर के संकोच को

एक मुक्त पंखों वाली तितली में बदल देती है—

जो निडर होकर आकाश की ओर उड़ती है।

 

आपका होना-

मानो गंगा का प्रवाह है—

शुद्ध, निस्वार्थ,

और अपनी राह में आने वाले हर जीवन को

सिंचित करता हुआ,

बिना थके, बिना रुके।

 

जब मैं आपको भाई कहती हूँ,

तो यह सम्बोधन मात्र नहीं,

मेरे विश्वास का एक अटूट सूत्र है—

जो समय की तीव्र धारा को भी

क्षणभर ठहरने पर विवश कर देता है।

 

आपके जीवन की थकान में

मेरा स्नेह शीतल जल की बूँद बने,

आपके संघर्ष में

मेरी प्रार्थना एक अचल छाया बने,

और आपके पथ पर

मेरा विश्वास ऐसा दीपक बने

जिसकी लौ किसी भी आँधी में न डगमगाए।

 

आपके व्यक्तित्व में

सिंह की अडिगता है,

ऋषि की निर्मल दृष्टि है,

और शिक्षक के हाथों की वह माटी है,

जिसमें जीवन अंकुरित होकर

फलता-फूलता है।

 

यह रक्षाबंधन

सिर्फ़ रक्षा का प्रतीक नहीं,

यह मेरे प्रण का विस्तार है—

कि मैं आपके जीवन के हर मौसम में

अपने भाव का व्रत निभाऊँगी;

जैसे आकाश,

पृथ्वी को हर ऋतु में

अपनी छाया देता है,

चाहे वर्षा हो, धूप हो या तूफ़ान।

 

यदि कभी यह बंधन

किसी भी आँधी से शिथिल होने लगे,

तो इस पाती को सँजो लेना:

क्योंकि इसे मैंने

सिर्फ़ शब्दों में नहीं,

आपकी आत्मा पर बाँधा है।

 

भैया,

मेरा प्रेम

 मेरी प्रार्थना

मेरी श्रद्धा,

और मेरा संपूर्ण विश्वास

आपके साथ रहेगा—

जन्मों से परे,

समय से परे,

जैसे ध्रुवतारा—

जो हर यात्री को दिशा देता है,

पर स्वयं अपनी जगह अडिग रहता है।

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