पथ के साथी

Thursday, November 14, 2024

1438-तुम्हारा भाव!

 रश्मि 'लहर

 


प्रिय!

तुम्हारी प्रतीक्षा में

जला देती हूँ कुछ दीप

अनायास

तुलसी के आसपास!

 भर जाता है रोम-रोम में

तुलसी की  सुरभि से लिपटा

तुम्हारा भाव!

पत्तियों की ओट से झाँकती

जलती लौ

हर लेती है मेरा हर अभाव!

 मेरे पास रह जाता है,

मेरे शब्दों का पल्लव

स्वप्कोष का कलरव

और

बस यूँ ही तुम्हारे बिना..

मेरा बीतना

सिखा देता है 

अपने प्रेम के दरख्त को

सजल आवेग से सींचना!

 मुझे सहेज लेती है प्रेम की पावन भक्ति

जीत लेती है मुझे तुम्हारे नेह की 

अकल्पित दृष्टि!

 मेरी मूक पलकों से बह पड़ती है

तुम्हारे निश्छल वियोग की अभिव्यक्ति!

छलछला पड़ती है

मेरे साथ-साथ,

तुम्हारी सुरभित स्मृतियों से ढकी 

संपूर्ण सृष्टि!

9 comments:

  1. प्रेममय सुंदर अभिव्यक्ति!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. रश्मि लहर जी की निर्मल भावों की अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई ।
    विभा रश्मि

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  3. प्रेम भाव से परिपूर्ण सुंदर कविता ।हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

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  4. वह विभा रश्मि जी ! बधाई हो, बहुत ही सुंदर एवं सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति

    सदर
    मंजु मिश्रा
    www.manukavya.wordpress.com

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  5. आप सभी को हार्दिक धन्यवाद!

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  6. Bahut sundar ..devine

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  7. बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण कविता।
    हार्दिक बधाई आदरणीया

    सादर

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  8. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई।

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  9. बहुत सुन्दर कविता. बधाई रश्मि जी.

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