रश्मि 'लहर'
प्रिय!
तुम्हारी प्रतीक्षा में
जला देती हूँ कुछ दीप
अनायास
तुलसी के आसपास!
तुलसी की
सुरभि से लिपटा
तुम्हारा भाव!
पत्तियों की ओट से झाँकती
जलती लौ
हर लेती है मेरा हर अभाव!
मेरे शब्दों का पल्लव
स्वप्कोष का कलरव
और
बस यूँ ही तुम्हारे बिना..
मेरा बीतना
सिखा देता है
अपने प्रेम के दरख्त को
सजल आवेग से सींचना!
जीत लेती है मुझे तुम्हारे नेह की
अकल्पित दृष्टि!
तुम्हारे निश्छल वियोग की अभिव्यक्ति!
छलछला पड़ती है
मेरे साथ-साथ,
तुम्हारी सुरभित स्मृतियों से ढकी
संपूर्ण सृष्टि!
प्रेममय सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
रश्मि लहर जी की निर्मल भावों की अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
प्रेम भाव से परिपूर्ण सुंदर कविता ।हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteवह विभा रश्मि जी ! बधाई हो, बहुत ही सुंदर एवं सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसदर
मंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
आप सभी को हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteBahut sundar ..devine
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया
सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता. बधाई रश्मि जी.
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