अनिल पाराशर ‘मासूम’
मुझसे ही बस माना करना
सारे जग से रूठा करना
भारी दिल को हल्का करना
सीखो सबको अच्छा करना
नफ़रत जैसी भी कर लेना
प्यार तो मेरे जैसा करना
झूठ नहीं मैं कह पाऊँगा
हाल मेरा मत पूछा करना
उम्र गुजारी ये सुन-सुनकर
ऐसे जीना ऐसा करना
मुझको कसम कभी मत देना
सच मेरा मत झूठ करना
मैं क्या हूँ परछाई हूँ बस
तुम साये का पीछा करना
जब अम्बर से तारा टूटे
मुझको उससे माँगा करना
मेरी याद दिलाएँगे ये
आँसू मत तुम पोंछा करना
कभी देखना मेरे सपने
कभी रात भर जागा करनी
क्या ‘मासूम’ में ख़म देखा है
अच्छे को अच्छा क्या करना
( तेरे जाने के बाद काव्य-संग्रह से)
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बहुत बहुत आभार मेरी पुस्तक और मेरी रचना को अपने पृष्ठ पर स्थान देने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteशुक्रिया दिल से
Deleteप्यारी गीतिका के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
बहुत सुंदर, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०६-०८-२०२३) को 'क्यूँ परेशां है ये नज़र '(चर्चा अंक-४६७५ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब सृजन ।
बहुत सुंदर सृजन। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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