लिली मित्रा
1- ठोकरों की राह पर
ठोकरों की राह पर
और चलने दो मुझे
पाँव
छिलने दो ज़रा
दर्द मिलने दो मुझे
फ़र्क क्या पड़ता है
चोट,
लगी फूल या शूल से
रो पड़ी है या नदी
लिपट अपने कूल से
घाव सारे भूलकर
नई चाह बुनने दो मुझे
पाँव
छिलने दो ज़रा
दर्द मिलने दो
मुझे...
खटखटाता द्वार विगत
के
क्यों रहे मन हर समय
घट गया जो, घटा गया है
कालसंचित कुछ अनय
पाट नूतन खोलकर
नई राह चुनने दो मुझे
पाँव
छिलने दो ज़रा
दर्द मिलने दो मुझे..
कौन जाने क्या छिपा
है
आगतों की ओट में?
निर्माण की अट्टालिका
फिर धूसरित विस्फोट में
अवसाद सारे घोलकर
नई आह सुनने दो मुझे
पाँव
छिलने दो ज़रा
दर्द मिलने दो मुझे..
-0-
2-उमस
टहलते हुए पार्क के
‘पाथ
वे’ पर
उतरती शाम को देखा
थोड़ा और
ध्यान से
छुटपुट बारिश से
बुझी नहीं थी तपती
जमीन की प्यास
भाप उगल रही थी वह
धुंध बनाकर ओढ़े बैठी
थी
अपनी ही उमसती कुनमुनाहट
को
पेड़ स्तब्ध थे,
उनमें साहस नहीं था
कि
हिला सकें अपनी एक भी
पात,
एक तरफ रह -रहकर
महकते कुटज
अपनी ही धुन में
बेसुध अनचाहे प्रयास करते,
उमस की धुंध महक से
जाती है क्या??
नीम की कसैली कड़ुवी
महक हावी थी हर बार उनके
सहृदयी सुगंधित
प्रयासों पर
धरती ने खींचकर भर ली
थी सारी कड़ुवाहट
चबा लिये थे नीम
उमसती तिलमिलाहट के चलते
विद्रोह के ये शांत
स्वर
शाम की लालिमा पर
कालिमा से फैल रहे थे
रात रोई होगी रातभर
पर मुझे पता है आज भी
वह वैसी ही खुद
में उफनती
नीम चबाती
पड़ी रहेगी ...
-0-
3- निकलने तो दीजिए दुर्गा को
क्या शातिर सारा
ज़माना?
क्यों डर के साए में ही
सतर्कता का अलख जगाना?
सशक्तीकरण का औजार
थमाते हुए ,
क्या जरूरी है विद्रूपताओं
के घृणित रूप दिखाना?
विश्वास के धरातल पर
आत्मविश्वास का अंकुर क्यों
नहीं बोते?
अच्छाइयाँ भी हैं...
बुराइयों के दलदल में ही क्यों भिगोते?
घूँघट से निकल
गरदन उठाकर मुस्कुराती
कलियाँ,
ना समझिए निमत्रंण इसे
नहीं ये पैगाम ए रंगरलियाँ।
समझ इनमें भी है
जरा भरोसा तो रखिए
रेशम- सी हैं तो क्या
गरदन पर इनकी
जकड़ भी परखिए,
जूझने तो दीजिए इन्हें
परिवेश से
निकलने तो दीजिए दुर्गा
को निज आवेश में ।
-0-
4-देवी
प्रेम विस्तार पा चुका है
इंसान से देवी बनाई जा चुकी हूँ
आराध्या हूँ
मानवीय आचरण अब
निषेध हैं
अभयदान की मुद्रा
और चेहरे पर
करुणा भाव सदा के लिये
चिपकाए रखना है
शीश झुकाए आते
जाएँगे श्रद्धालु
अपनी फ़रियाद लिये,
बस सुनते रहना है
अपनी सभी इच्छाएँ,
अभिलाषाएँ, कुंठाएँ,
अभिव्यक्तियाँ,अनुभूतियाँ
प्रतिमा की प्रस्तर
वर्जनाओं में कैद कर लेनी है
सुनो लोगो!
देवी बनना
इतना भी आसान नहीं..
रचनाओं को स्थान देने के लिए हृदय से आभार सर🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविताएँ, लिली मित्रा जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर🙏
Deleteबहुत ही सुंदर कविताएँ.... लिली जी को बधाइयाँ
ReplyDeleteधन्यवाद अर्चना जी🙏
Deleteवाह..
ReplyDeleteआभार🙏
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण कविताएँ। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीया🙏
Deleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचनाएँ। हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसादर
सुरभि डागर
धन्यवाद सुरभि जी🙏
Deleteअति सुंदर भावपूर्ण रचनाओं की सुगंध से सुगंधित हुआ है आज पाठक मन 🌹😊🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनिमा जी🙏
ReplyDeleteसुंदर रचनाएँ, बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविताएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविताएँ । लिली मित्रा जी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि