भीकम सिंह
राजनैतिक
कार्यकर्ता
लड़ना
चाहते हैं
हाथापाई
करना चाहते हैं
राजनेता
देखते हैं
और
व्यंग्य से हँसते हैं
मतदाता
गमगीन
बेबस
हैं कि वो,
करें
तो क्या करें
।
राजतंत्र
बढ़ता जा रहा है
लोकतंत्र
-
हाशिये
की ओर
खिसकता
जा रहा है
संवेदनशील ?
निर्वाचन
आयोग
बेबस
है कि वो ,
करे
तो क्या करे
।
वर्तमान राजनीति के विद्रूप को रेखांकित करतीं सशक्त कविताएँ।बधाई डॉ. भीकम सिंह जी।
ReplyDeleteवर्तमान राजनीतिक परिदृश्य का यथार्थ चित्रण। बहुत-बहुत बधाई सर।
ReplyDeleteआज की राजनीति के विकृत रूप का यथार्थ चित्रण करती कविता। बहुत बहुत बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचनाएँ...बहुत बहुत बधाई आपको।
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