रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
लहलहाते
रहेंगे
आँगन
की क्यारियों में
हिलाकर
नन्हे-नन्हे पात
सुबह
शाम करेंगे बात
प्यारे
पौधे।
पास
आने पर
दिखलाकर
पँखुड़ियों की
नन्ही-नन्ही
दन्तुलियाँ
मुस्काते
हैं
फूले
नहीं समाते हैं
ये
लहलहाते पौधे।
मिट्टी
पानी और उजाला
इतना
ही तो पाते
फिर
भी रोज़ लुटाते
कितनी
खुशियाँ....
बच्चे....
ये
भी पौधे हैं
इन्हें
भी चाहिए -
प्यार
का पानी
मधुर
-मधुर स्पर्श की मिट्टी
और
दिल की
खुली
खिड़कियों से
छन-छनकर
आता उजाला
तब
ये भी मुस्काएँगे
अपनी
किलकारियों का रस
ओक
से हमको पिलाएँगे
जब
भी स्नेह -भरा स्पर्श पाएँगे
बच्चे
पौधे,
पौधे बच्चे
बन
जाएँगे
घर
आँगन महकाएँगे।
-0-
बहुत ही सुन्दर रचना सर ! हार्दिक शुभकामनाएँ, पर्यावरण दिवस की भी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय गुरुवर को
सादर
मनोहारी कविता।
ReplyDelete'पँखुड़ियों की
नन्ही-नन्ही दन्तुलियाँ
अति सुंदर। हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय भैया 🙏
आपका बहुत -बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है अंकल जी हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteसुन्दर और प्रेरक रचना के लिए हार्दिक बधाई काम्बोज भैया.
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मनमोहक कविता। हार्दिक बधाई आपको। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता
ReplyDeleteनन्ही-नन्ही दन्तुलियाँ - बहुत ही सुंदर
नमन गुरुवर
सच में, पौधों और बच्चों का स्वरूप एक सा होता है, दोनो कोमल, दोनों प्यारे और दोनो ही देखभाल और प्यार के बदले बस प्रसन्नता ही देते हैं । इस बेहतरीन रचना के लिए आपको बहुत बधाई
ReplyDelete