पथ के साथी

Thursday, March 30, 2023

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1-देवत्व की वेदना                                         

डॉसुशीला ओझा 

 

बिछा दो राहों में काँटे

पैरों में चुभकर चेतना का प्रस्फुटन होता है.. !! 

रक्त की लालिमा से 

इतिहास लिखे जाएंगे.. !! 

ईसा को शूली पर चढ़ाया.. 

शूली मानवता का हृदय हार बन गया, शूली चेतना का द्वार बन गया..!! 

सुकरात ने पीया विष का प्याला विष में अमृत्व का वरदान मिला.. !! 

मीरा ने विष प्याला पिया कृष्णत्व का अनुपम उपहार मिला..!! 

कृष्ण ने शाप को शिरोधार्य किया, पूर्ण ब्रह्मणत्व से अभिमंत्रित हुए..!! 

युवराज से नहीं वनवासी में छिपा

सृजनात्मकता का मर्यादा पुरुषोत्तम का भव्य रूप..! 

राधा जली विरहाग्नि में कृष्ण के नाम से जुड़कर राधाकृष्ण हुई..! 

अपना सम्मान का जयमाल रखो इसमें अहंकार के कांटे हैं.. !!

 साधना, तपस्या से वंचित करेंगे..!! 

सतकर्म करो, सद्भाव रखो, ज्ञान दीप जलाते रहो..!! 

यह मर्त्य लोक बड़ा अद्भुत है.. !! 

अग्नि परीक्षा में उतरने की हिम्मत रखो.. निखरोगे और 

 

संवरोगे, परिशीलन तुम्हारा होगा..!! 

 जीवितावस्था में नहीं मरणोपरांत भारत रत्न मिलेगा..! 

यह चिर सम्मान है, मानवता का..!! 

जीवितावस्था मे परम ब्रह्म वन -वन घुमता है.. !! 

मरणोपरांत रामचरितमानस लिखा जाता है..!! 

तर्क वितर्क के भावों से मानस परिष्कृत होता है..!! 

सम्मान में अभिमान निहित है,, मुझे मेरा कांटों भरा वह 

मार्ग दिखा दो.. !! 

गड़ते काँटों की चूभन से

लहू भी स्याही बनकर 

पन्नों के पृष्ठों पर चढ़कर 

इतिहास बन जाता हैं.. 

अतीत अपनी विरासत है..!! 

अतीत अपना गौरव है..!! 

 वर्तमान में तपकर ही सूरज ढलता है ,

फिर भी गगन में ताम्रवर्ण बन चमकता है 

 

सुशीला ओझा 

बेतिया, प. चम्पारण

-0- susheela.mishra1950@gmail.com

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2-हे जगजननी 

          प्रणति ठाकुर

 

हे जगजननी ,शिव की रमणी ,हम बच्चों पर दया करो 

 

आदिशक्ति ,जगमोहिनी माता ,तुम जननी त्रिभुवन सुखदाता ,

मोह जगत् का बाँधे सबको आसक्तों पर दया करो ,

हे जगजननी ,शिव की रमणी, हम बच्चों पर दया करो ..

 

त्रिविध- ताप , संताप हरो माँ,पापी को निष्पाप करो माँ ,

भव - बन्धन के तम से घिरा जो ,अशक्तों पर दया करो ,

हे जगजननी, शिव की रमणी ,हम बच्चों पर दया करो...

 

सब समझे जग बस माया है ,क्षणभंगुर  कंचन काया है,

ध्रुव - शाश्वत क्या समझ सके न,अनुरक्तों पर दया करो,

हे जगजननी, शिव की रमणी हम बच्चों पर दया करो...

 

मैं हूँ अकिंचन ,पापी, अधम हूँ,मोह - मदांध ,बुद्धि में कम हूँ ,

तुम जननी हो तारणहारी ,निज भक्तों पर दया करो,

हे जगजननी, शिव की रमणी ,हम बच्चों पर दया करो...

हे जगजननी, शिव की रमणी, हम बच्चों पर दया करो ।

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2 comments:

  1. सुन्दर रचनाएँ 🌹🙏बधाई आप दोनों को 🌹🙏

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  2. बहुत सुंदर ...आप दोनों को बधाई !

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