प्रीति अग्रवाल
दुःख में, जाने ऐसा क्या है
एक बार की अनुभूति भीबरसों तक साथ रहती है
उसी शिद्दत से बार- बार,
हर बार मिलती है...
सुख में वो बात नहीं...
उसकी यादें
धुँधली हो जाती हैं
बिसरी अनूभूति पाने की धुन
फिर सवार हो जाती है
दर -दर घुमाती हैं
होड़ लगवाती
फिर भी
उस भूले सुख को
दोहरा नहीं पाती है...
कैसी विडंबना है,
दुख कोई नहीं चाहता
पर वो चाहे कितना ही पुराना हो,
साथ निभाता है
जब भी याद आता है
उसी गुज़रे दौर में ले जाता है,
सारी बारीकियाँ
एक बार फिर दोहराता है।
सुख, सब चाहते है
पर, वो चाहे
कितना ही नया क्यों न हो
असन्तुष्ट ही रखता है
'बस, एक बार और '
इस अनबूझ, अतृप्त चाह में
दौड़ाए रखता है...
कहीं ऐसा तो नहीं
दुख, चिरकालिक है
स्थायी है,
सुख, क्षणभंगुर है
अस्थायी है...?
आखिर कुछ तो कारण है
कि दुख याद रहता है
सुख भूल जाता है.... !
पीड़ा की सघन अनुभूति को व्यक्त करती भावपूर्ण कविता।प्रीति जी को बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया प्रीति जी को 🙏
बहुत ही भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसुंदर
हार्दिक बधाई प्रीति जी
प्रीती जी आपकी रचना बड़ी ही भावुकता से लवालव है |मनको छू गयी |श्याम -हिन्दी चेतना
ReplyDeleteपत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय भाई साहब का हार्दिक आभार!
ReplyDeleteआदरणीय श्याम भाई साहब ,पूर्वा जी, रश्मि जी और भैया शिवजी, आपने मेरी कविता के मर्म को समझा, सराहा, यही मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार है। हृदयतल से आभार!
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति... हार्दिक बधाई प्रीति।
ReplyDeleteआखिर कुछ तो कारण है
ReplyDeleteकि दुख याद रहता है
सुख भूल जाता है.... !
क्या खूब...इन पंक्तियों ने कितना कुछ कह दिया | मेरी बधाई |
दुख, चिरकालिक है
ReplyDeleteस्थायी है,
सुख, क्षणभंगुर है
अस्थायी है...? बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई प्रीति जी।
बहुत बहुत आभार सुदर्शन दी, प्रियंका जी, कृष्णा जी!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण सृजन । हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ओंकार जी, रीत जी!
ReplyDeleteदुख हमें जोड़ता है, क़रीब लाता है सुख में वो बात कहाँ ?
ReplyDeleteसुंदर विचारप्रधान कविता बधाई प्रीति जी।
सुन्दर रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सुशीला जी, भीकम सिंह जी।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना. बधाई प्रीती जी.
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