डॉ .रत्ना वर्मा
1- मै मौन हूँ
मै मौन हूँ
निःशब्द हूँ
क्यों न मुझे मौन ही रहने दो
आज भी।
कितना अरसा हो गया
हिसाब नहीं लगाती मैं
तुम कहते हो
अब तो बरस बीत गए।
खाली- खाली- सा है
मेरा मन
नहीं समझा पाती
क्या कहूँ कैसे कहूँ।
पर
तुम तो जानते हो
समझते हो मुझे
क्या है मेरे दिल में।
तो आज भी समझ लो ना
बिन कहे ही
बिन पूछे
मेरे अंतर्मन की भाषा को।
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2- चुप -चुप- सी माँ
कुछ दिन पहले से माँ
चुप -चुप- सी हो गई थी
न घुटनों का दर्द बयाँ करती
न कमर का
कुछ पूछने पर
हौले से मुस्करा देती
उनका खाना धीरे-धीरे
कम होता जा रहा था
यह तो उनके जाने के बाद जाना
कि ये तो संकेत था
उनके जाने का
हम समझ ही न पाए
कहते थोड़ा और खा लो माँ
हमारा मन रखने को
वे
रोटी का एक छोटा टुकड़ा
फिर मुँह में डाल लेतीं
और पनीली आँखों से देखती
जैसे कह रही हों खुश !
मैं पूछती- क्या खाने का मन है माँ
वही बना देंगे जो इच्छा हो
'कुछ नहीं' के उनके
शब्दों में
जैसे छुपा था वह ब्रह्म वाक्य-
‘कोई इच्छा नहीं अब
जी लिया सारा जीवन
देख लिया सुख दुःख का आरोहण
अब बस जाना ही बाकी है
आ रहा है बुलावा...’
और आ ही तो गया बुलावा
चली तो गईं वे शांति से
चुपचाप
बिना कुछ कहे
बिना कुछ सुने
सुबह- सुबह अक्षय तृतीया के दिन
सबने कहा पुण्यात्मा थी
अच्छे दिन गईं हैं
और मैं सोचती रही...
माँ तो पुण्यात्मा ही होती है
तभी तो वो माँ होती है...
22 मई 2021
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3- हमारी माँ
हमारी माँ जो कभी
हमें तकलीफ़ में देख
दर्द दूर करने के
अनेकों उपाय करती थी
वो आज खुद दर्द में हैं
मैं कैसे दूर करूँ उनका दर्द
वो तो खुद हम सबका
दर्द समेटती आई है
कैसे पूछूँ उनसे कि माँ
कैसे समेट लेती थी तुम
आँचल में हमारा दर्द
आज
कराहती माँ को देख
दर्द से भर आती हैं मेरी आँखें
अब जाकर समझ में आया
आँसुओं से भीगे उनके
आँचल का राज़
हृदय के एक कोने में
कैसे छिपा लेती थी
हम सबका दर्द
माँ ममता की खान होती है
प्यार और दुलार का
भंडार होती है
माँ और कुछ नहीं
बस माँ होती है l
-0-29-09-2020
माँ के ममत्व को रेखांकित करतीं भावाकुल मन की सुंदर रचनाएँ।बधाई रत्ना वर्मा जी।
ReplyDeleteमाँ से आत्मीयता प्रकट करती सुंदर कविताएं। बधाई।
ReplyDeleteसच है! माँ बस माँ होती है!
ReplyDeleteमन को भिगोने वाली सुंदर कविताएँ!
~सादर
अनिता ललित
माँ तो माँ होती है । सम्पूर्ण विश्व में उसके समान कोई नहीं। बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लेखन। हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ...हार्दिक बधाई रत्ना वर्मा जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteमाँ की रचनाएँ मन को छू गईं. माँ के चले जाने पर उनकी सभी अनुभूतियों को समझ पाते हैं. भावपूर्ण रचनाओं के लिए बधाई रत्ना जी.
ReplyDeleteमन भावुक हो गया, क्या कहूँ ? बधाई रत्ना जी इन भावपूर्ण पंक्तियों के लिए
ReplyDeleteलेखन न तो जन्मजात परोसी गई विरासत है और न ही प्रयत्न पूर्वक हासिल विधा। यह तो भोगे हुए यथार्थ का दिग्दर्शन है। वरना वाल्मीकि कैसे रामायण रच पाते। वियोगी होगा पहला कवि।
ReplyDeleteयही बात सशक्त तथा सार्थक तरीके से मुखरित है आपकी रचनाधर्मिता में। प्रशंसा बहुत सतही शब्द है। यह तो आत्मा तक उतर जानेवाला एहसास है, जो इन रचनाओं को पढ़कर स्वत: उपजा।
- जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
- मां की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र
हार्दिक साधुवाद। सादर : विजय जोशी