पथ के साथी

Friday, May 6, 2022

1204- तीन रचनाकार

  

1-डॉ . भीकम सिंह

1-स्मृति 

 

एक जुगनू था 




सूरज का स्वप्न देखता
 

तारों-सा  झरता 

रोशनी के टुकड़े 

उठा-उठाकर 

मारा - मारा फिरता 

वहीं मेरा प्रेम था 

रात - सा गहरा 

बिठा कर पहरा

सुबह होने से डरता 

 -0-

2-गर्त

 

कुछ नेताओं को 

शादी-समारोह में बुलाकर 

हम धन्य हो जाते हैं 

मित्र खटखटाते रह जाते हैं 

हमारी भावनाओं के दरवाजे 

जिन्हें हम

 कामकाजी तरीकों से खोलते हैं 

 

आओ और चल दो

अपना सम्मान बचाने के लिए 

मित्र जानते हैं 

हम हाथ जोड़कर 

नेताओं के आगे- पीछे 

कस्तूरी की खोज में लग जाते हैं 

हमारी आस्था मित्र कहाँ तोलते हैं 

 

हमने सोचा नहीं था 

चापलूसी का भी गर्त है 

जिसमें -

लहूलुहान रिश्तों की पर्त है 

हम स्वार्थ में डूबते 

रसातल में पहुँचकर 

कहकहे खोजते हैं   

 

हम सफल हैं

ऐसा हम मानते हैं 

चापलूसी सलामत रहीं 

तो सफलता के झरोखों से 

खुद्दारी भी देख लेंगे 

जिसे 

कुछ सिरफिरे पोषते हैं ।

-0--

2-रश्मि लहर, लखनऊ

1

स्वेटर में भाव समाहित कर

रिश्ते बुनना जाने थीं तब


ईंटें चुनकर अपना एक घर


अम्मा गढ़ना जाने थीं तब

 

अपने रुनझुन से ऑंगन में

किलकारी भरते बचपन में

मनमोहक नन्हे क़दमों संग

अम्मा सजना जाने थीं तब

 

अपने हाथों की गर्मी से

सपनों की छिपती नर्मी से

एहसासों से अनुभव चुनकर

अम्मा बॅंटना जाने थीं तब

 

अक्सर टकराहट होती थी

टेढ़ी-मेढ़ी- सी रोटी की

मीठी झिड़की दे सबका मन

अम्मा भरना जाने थी तब

 

चेहरे  जब रंग बदलते  थे

उखड़े-बिलखे जब लगते थे

चुप्पी के हर एक भावों को

अम्मा पढ़ना जाने थी तब

 

निर्धन की आकुल क्षुधा मिटा

निर्दोष क्लेश को परे हटा

पलकों पर उज्ज्वल समय सजा

अम्मा बसना जाने थीं तब

 

हालात से नहीं हारी थीं

अपनों पर जीवन वारी थीं

अपने कुटुम्ब की अल्पे ले

अम्मा मिटना जाने थीं तब

-0-

2

 तुम!

इस तरह आना..

कि जैसे बहते ऑंसुओं को

खिलखिलाहट धो जाए..

मन के उचाट विचार ..

चुपचाप..

प्रेम के आँचल में खो जाएँ!

तुम इस तरह आना..

कि

विहस उठे क्षितिज पर संध्या..

और

दौड़कर गले लगा ले..

चाँद को!

विरही धरा..

तुम इस तरह आना!

-0-

3-प्रीति अग्रवाल कैनेडा

क्षणिकाएँ

1.



मैं नदिया होकर
भी प्यासी,
तुम सागर होकर
भी प्यासे,
'गर ऐसा है
तो ऐसा क्यों,
दोनों पानी...
....दोनों प्यासे!


2.
उनींदी अँखियाँ
तलाशती सपनें
जाने कहाँ गए
यही तो हुआ करते थे....
उनके पूरे होने की आस में
हम दोनों जिया करते थे....।
3.
करिश्में की चाहत में
कटते हैं दिन,
हम ज़िंदा हैं
करिश्मा ये
कम तो नहीं....!
4.
मेरी कमरे की खिड़की
छोटी सही....
उससे झाँकता जो सारा
आसमाँ, वो मेरा है !
5.
यूँ तो होते हो
पास, बहुत पास
हर पल....
शाम होते ही मगर
याद आते हो बहुत।
6.
जानती हूँ मुझसे
प्रेम है तुम्हें,
दोहरा दिया करो
फिर भी,
सुनने को जी चाहता है....!
7.
चलना सँभलके
इश्क नया है...
सँभल ही गए
तो, इश्क कहाँ है!
8.
रिश्ते
बने कि बिगड़े
सोचा न कर,
थे सिखाने को आए
सिखाकर चले....।
9.
तुम्हारे कहे ने ही
दिल को
छलनी कर दिया,
अनकहे तक तो हम
अभी पहुँचे ही नहीं....!
10.
गिनवाते रहे
तुम अपने गिले,
हम इस कदर थके
कोई शिकवा न रहा...।
11.
एक बार बचपन में
चाँदी का सिक्का उछाला था
चित-पट तय हो ही न पाई
वो जाकर
आसमान में जड़ गया,
वही तो है
जो चाँद बन गया!

-0-

22 comments:

  1. जुगनू कविता बहुत सुंदर लगी। बधाई भीकम सिंह जी

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  2. रश्मि जी सुंदर कविताएँ।
    प्रीति जी क्षणिकाएं बेहतरीन।

    बधाई।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जी

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  3. भीकम जी . ...प्रेम के भिन्न रूप दर्शाती दोनों कविताएँ बहुत बढ़िया

    रश्मि जी... बहुत प्यारी कविता
    प्रीति जी की सभी क्षणिकाएँ बहुत भावपूर्ण
    आप सभी को हार्दिक बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जी

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  4. स्मृति कविता प्रेम के मनोभाव को सुंदर ढंग से व्यक्त करती है वहीं गर्त में व्यवहारिक जगत के यथार्थ को तीक्ष्ण व्यंजना के साथ व्यक्त किया गया है।डॉ. भीकम सिंह जी को बधाई।

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  5. रश्मि लहर की दोनो कविताएँ भावाकुल मन की कविताएँ हैं।एक कविता में माँ की संवेदनाओं को सहज अभिव्यक्ति मिली है,दूसरी कविता प्रिय को सहज आमंत्रण देती सुंदर कविता है।बधाई रश्मि लहर जी।

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    1. सादर धन्यवाद

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    2. बहुत बहुत धन्यवाद जी

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  6. प्रीति अग्रवाल की क्षणिकाएँ हमेशा प्रभावित करती हैं।कवयित्री का भावाकुल मन हर क्षणिका से झाँकता है।सारी क्षणिकाएँ विरह की भावभूमि पर पहुँच कर रची गई हैं जहाँ एक अतृप्ति है और प्रिय की प्रतीक्षा है।बहुत सुंदर क्षणिकाएँ।बधाई प्रीति जी।

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  7. भीकम सिंह जी,रश्मि जी की रचनाएँ बहुत सुंदर हैं,प्रीति जी की क्षणिकाओं ने हमेशा की तरह प्रभावित किया। आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ।

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  8. बहुत शुक्रिया जी

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  9. सारी कविताएं एक से बढ़कर एक।

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  10. पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीय काम्बोज भाई साहब का हार्दिक आभार।
    आदरणीय भीकम सिंह जी के साथ मंच साझा करना आपने आप मे एक विशेष सम्मान। सुंदर रचनाओं के लिए उनका धन्यवाद।
    रश्मि जी की कविताएँ सरस्, मनभावन, आपको शुभकामनाएँ और बधाई।
    हमेशा की तरह आज भी मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अनिता जी, पूर्वा जी, शिवजी भैया, सुरँगमा जी और विश्वमोहन जी का ह्र्दयतल से आभार!!

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  11. मानव मन की भावनाओं को बहुत ख़ूबसूरती से उकेरती सभी रचनाएँ, दिल को छू गईं! हार्दिक बधाई सभी रचनाकारों को!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  12. अलग अलग भावों को बेहतरीन रूप से उकेरती इन सभी सुन्दर रचनाओं के लिए आप सभी को बहुत बधाई

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  13. एक से बढ़कर एक सुन्दर रचनाएँ और क्षणिकाएँ...आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  14. बहुत बहुत धन्यवाद

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  15. बहुत सुंदर

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  16. अनिता जी, कृष्णा जी, प्रियंका जी और ओंकार जी, आपके सुंदर शब्दों के लिए आभार!

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  17. जुगनू,,,,, स्वेटर,,,,,, सिक्का सहित सभी रचनाएं बहुत सुंदर हैं। रचनाकारों को हार्दिक बधाई।-परमजीत कौर'रीत'

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