रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
आज 15 अगस्त
है
आँख खुलते ही
आज़ादी के मायने
याद आए
जो ज़्यादातर
के लिए
यही हैं
बिल्कुल सही हैं
कार्य-स्थल पर
कुछ नारे लगवाने हैं
देश-भक्ति के गीत गाने
हैं
अमर शहीदों को
श्रद्धांजलि-सुमन
अर्पित कराने हैं
बच्चों के हाथों में
तिरंगे थमाने हैं
बूँदी के दौने
बँटवाने हैं
कुछ घर के लिए
बचाने हैं
आखिर उन्हें भी तो
ये उत्सव मनाने हैं
रैली निकाली जानी है
एक सभा
आयोजित करानी है
अपना पक्ष
गम्भीरता से रखना है
भाषण में करना है
परतन्त्रता का विरोध
स्वतंत्रता में बड़ा अवरोध
जो सदा से है
फिर साहब को
घर वापस जाना है
स्व-सुविधा हेतु
कुसुमा पर
दिन भर हुकुम चलाना है
शोषण मुक्ति की बात
साहब
मजदूर दिवस पर अगली बार करेंगे
फिर भाषण दे दासी का उद्धार करेंगे।
बेहतरीन व्याख्या करती ,सुंदर कविता, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना। हार्दिक बधाई, शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत खूब 🙏
ReplyDeleteबहुत अच्छा कटाक्ष...सुंदर कविता।बधाई।
ReplyDeleteसहज साहित्य में मेरी रचना को स्थान देने हेतु आदरणीय गुरु जी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteरचना को सराहती आपकी सुन्दर टिप्पणी का हृदय तल से आभार।
सादर
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-08-2021 ) को 'नूतन के स्वागत-वन्दन में, डूबा नया जमाना' ( चर्चा अंक 4158 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत ही बेहतरीन कविता 👌💐
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteकिसी भी विषय पर वैचारिकी विषमता सामान्य है किंतु स्वतंत्रता दिवस से भावनात्मक लगाव अतार्किक ही मान्य है।
ReplyDeleteजयहिंद।
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteयह वयंगय सच्चाई कह गया !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ,, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteरश्मि जी आज के समाज जा दर्पण दिखाती कविता है बधाई।
ReplyDeleteबड़ा सटीक कटाक्ष करती हुए इस बढ़िया रचना के लिए रश्मि जी को बहुत बधाई
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