पथ के साथी

Saturday, December 18, 2021

1168-प्रीत की माला

 डॉ. सुरंगमा यादव


वैधव्य - प्रसार


देखकर आसपास
सोच में पड़ा मन
क्या रखा नहीं इन्होंने
करवा व्रत !
या चूक हुई
विधि-विधान में
जो जीवन बना भार
पति की उम्र पर
क्यों लगा ग्रहण?
ग्रामीण स्त्रियाँ
रीति-रिवाज और आस्था
दोनों ही निभातीं शतशः
फिर भी क्यों रूठ जाता
इनका भी सौभाग्य !
प्रश्न उठा बार-बार
व्रत को आयु से जोड़ना
छलावा तो नहीं
स्त्री मन के साथ?
झटककर य प्रश्न
सोचने लगा मन-
व्रत के बहाने चलो
आओ गूँथें हम
एक-दूजे लिए
प्रीत की माला।
2
जिंदगी जब तक खुद न रूठ जा तुमसे
तुम जिंदगी से कभी मत रूठना
सीधी राहों से ही नहीं
कभी -कभी रूट डायवर्ट करके भी
जिंदगी मंजिल तक पहुँचाती है।

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11 comments:

  1. सुंदर सृजन, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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  2. व्रत के बहाने चलो/आओ गूँथें हम/एक-दूजे लिए/प्रीत की माला।.....बहुत सुंदर भाव।हार्दिक बधाई

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  3. अत्यंत सुंदर सार्थक सृजन... वाह्ह्ह... बधाई 🌹🙏🙏

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  4. सुन्दर रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  5. सुंदर भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई सुरंगमा जी।

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  6. ....छलावा तो नहीं स्त्री मन के साथ.....
    सुंदर सृजन, बधाई सुरँगमा जी।

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  7. सुन्दर भावपूर्ण रचना ....
    सही कहा - छलावा तो नहीं / स्त्री मन के साथ?
    हार्दिक शुभकामनाएँ सुरंगमा जी

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  8. आप सभी का हृदयतल से आभार।

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  9. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन। हार्दिक बधाई

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  10. सुन्दर रचनाओं के लिए बहुत बधाई

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