1-सपना
भीकम सिंह
ना मैं साहिर
ना इमरोज़
पर ढूँढता हूँ
हर रोज
ख्वाबों में
ख्यालों में
अमृता
-
उसका सागर
जहाँ वह
डूबने की हद
पार कर गई ।
प्रेम के शब्द
और
उनकी खुशबू
मर्यादा के अर्थों को
देकर
नई जुस्तजू
पुराने-से
पड़ गए
रिश्तों में
नये आयाम
धर गई
।
मैं
आसक्ति को ओढ़े
सोच रहा था
तट पर बैठे
तभी एक
उच्छृंखल-सी लहर
पहने हुए
दोपहर
टूट कर गिरी
और
तर कर गई ।
-0-
2-अलसाई सुबह
आज का दिन
कुछ आलस से भरा है
आलस थोड़ा तन का
आलस थोड़ा मन का
जिंदगी के चलते रहेंगे लफड़े ।
देह चाहती आज आराम
जी नही करूँ कुछ काम
अलसाई-सी सुबह
पड़ी हूँ निष्प्राण
बिस्तर पर आलस से जकड़े ।
आज अच्छा लग रहा है
बिखरा घर
फैले कंबल
सलवटों से भरी चादर
कुरसी पर रखे बिन तह किए कपड़े ।
टेबल पर रखा चाय का कप
खुला अखबार
नि:शब्द डायरी का पन्ना
मुस्कुराता हुआ पेन
अंजुम त्याग दिए आज सारे पचड़े
।
-0-
ताज़गी का अहसास करातीं दोनों कविताएँ बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी एवं अंजू जी।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बेहद सुंदर। रचनाकार द्वय को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteअलग अलग भाव बोध की दो कविताएँ,एक प्रेम के कोमल अहसास से भरी और एक अलसाए दिन की बेतरतीबी में सुकून ढूँढती कविता।डॉ.भीकम सिंह जी एवं अंजू खरबंदा को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteआलस में ताजगी की बानगी, सुन्दर कविता, अंजू खरबंदा जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteउम्दा रचनाओं के लिए दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअति उत्तम सृजन 🌹🙏😊
ReplyDeleteआप दोनों रचनाकारों को असीम बधाई 🌹🌹🌹🙏
ReplyDeleteमेरी कविता प्रकाशित करने के लिए सहज साहित्य का हार्दिक धन्यवाद और पसन्द करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteभीकम जी एवं अंजू जी सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteदोनों कविताएँ बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण।
ReplyDeleteआदरणीय भीकम सिंह जी को एवं अंजू जी को हार्दिक बधाई।
सादर 🙏🏻
भीकम जी की 'सपना' कविता और अंजु जी की 'अलसाई सुबह' कविता बहुत सुन्दर सृजन है |आप दोनो रचनाकारों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteविभिन्न भाव-बोध प्रकट करती रचनाएं। रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ ताज़गी लिए।
ReplyDeleteभीकम सिंह जी और अंजु जी को बधाई।
अलग-अलग भावों को बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत करती हुई रचनाओं के लिए आप दोनों को बहुत बधाई
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