पथ के साथी

Friday, November 26, 2021

1159-विलीन हो जाऊँ ऐसे

 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' 

































विलीन हो जाऊँ ऐसे

बसे रहो सदा मेरी चेतना में
धरती में बीज की तरह
अम्बर में प्रणव की तरह
सिंधु में अग्नि की तरह
हृदय में सुधियों की तरह
कण्ठ में गीत की तरह
नेत्रों में  ज्योति की
परछाई में मीत की तरह
जन्म जन्मांतर तक
कि
जब भी मिलना हो तुमसे
आकाश-सी बाहें  फैलाकर मिलूँ
विलीन हो जाऊँ 
हर जन्म में
केवल तुम में
जैसा आत्मा मिल जाती है
परमात्मा में
(19 -11 -21)














13 comments:

  1. दिव्य प्रेम का इज़हार करती कविता••वाह,हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  2. बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई!

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  3. वाह! बहुत बढ़िया

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  4. बहुत अच्छा लगा श्रीमान इसे पढ़कर ������

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  5. बहुत ही प्यारी कविता है गुरु जी।प्रेम के अलग ही भाव को दर्शाती सुन्दर कविता।💐

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  6. सच्चे प्रेम को अभिव्यक्त करती अति उत्कृष्ट रचना।
    हार्दिक बधाई गुरुवर।

    सादर प्रणाम 🙏🏻

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  7. अति उत्कृष्ट रचना..हार्दिक बधाई भाईसाहब।

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  8. प्रेम की पराकाष्ठा से ओतप्रोत अति सुन्दर कविता।बधाई आदरणीय।

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  9. अनुपम अभिव्यक्ति

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  10. पावन, समर्पित प्रेम की पराकाष्ठा, उत्तम शब्द-संयोजन, अति सुंदर कविता। बधाई भैया

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  11. निस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा - कितनी समर्पित रचना ।
    बधाई भैया आपको ।

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  12. माधुर्य भाव से परिपूर्ण रचना , हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आदरणीय भाईसाहब जी।

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