कमला निखुर्पा
1
आशीष हाथ
धरा मेरे सर पे
घनी छाँव पा
पुरसुकून हुई
भरी दुपहरी भी ।
2
दूर से आई
नेहिल पुरवाई ।
चहके पंछी
झूमा तरु- मन ये
नन्ही कली भी खिली ।
-0-
कमला निखुर्पा
1
आशीष हाथ
धरा मेरे सर पे
घनी छाँव पा
पुरसुकून हुई
भरी दुपहरी भी ।
2
दूर से आई
नेहिल पुरवाई ।
चहके पंछी
झूमा तरु- मन ये
नन्ही कली भी खिली ।
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बहुत सुंदर!
ReplyDeleteअनुपम भाव
ReplyDeleteअति सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद आप सभी का
ReplyDeleteस्नेह और आशीष का आकांक्षी ये मन प्रोत्साहित हो जाता है, यही आजके वक्त की बड़ी जरूरत है।
ReplyDeleteबधाई।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया।
बहुत सुन्दर... हार्दिक बधाई कमला जी।
ReplyDeleteभावपूर्ण
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ कमला जी
बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई कमला जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कमला जी। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, हार्दिक बधाई दीदी।
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