माँ प्रतिपल सोचती
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
मेरी माँ
आत्मनिर्भर होकर भी
निर्भर रही पिता पर
जीवन भर
मगर स्वेच्छा से
पिता ने विवशता की डोर से
कभी नहीं बाँधा उन्हें
और न ही
पूर्वाग्रह की बेड़ियाँ
माँ के सुकोमल पाँव में
बाँधकर रखीं
माँ कैद में नहीं रही
वह तो केवल इस भाव से
रजत पायल भेंट करते थे उन्हें
कि स्त्री का अधिकार
है साज शृंगार
पिता ने बाध्य नहीं किया
कि आँचल की गिरफ्त में रहो
वह बरस पड़ते थे
जब भी कोई गरजता-
‘तुम औरत हो परदे में रहो
समाज के आगे हरदम
झुक कर चलो’
पिता ने हर बार टोका
माँ को राह चलते-
‘जिंदा रहना है
तो सर उठा कर जियो’
वह स्वत: ही ओढ़कर जाती
हमेशा चौखट के बाहर
खोखली रुढ़ियों की चादर
सुशिक्षित होकर
एक शिक्षिका होकर
विद्या के मंदिर में
नन्हे- मुन्नों की हथेलियों में
रखा प्रसाद बेशक
उन्होंने विदेशी भाषा का
जो कि देश ने अनिवार्य समझा
भावी विकास के लिए
मगर
पाश्चात्य संस्कृति के रंग में
माँ ने स्वयं को कदापि नहीं रँगा
भारतीय सभ्यता में
रची-बसी माँ
घूँघट में ही रही
घरेलू बनकर
पिता ने उनकी आँखों पे
गान्धारी-सम पट्टी नहीं रखी
वह चाहते थे माँ
सृष्टि का सम्पूर्ण रूप निहारे
भर ले बाहों में आकाश
अपने पंख पसारे
पिता अब दूसरी दुनिया में हैं
और मेरी माँ
घर की दहलीज के भीतर जी रही है
समाज के प्रावधानों के अनुरूप
वैधव्य जीवन एकांतवास में
सुख-सुविधा
उत्सव उल्लास
समारोहों से कोसों दूर
कष्टमय एकाकी पलों के बीच
उम्र के आखिरी छोर पर बैठी माँ
प्रतिपल सोचती है
पिता के बारे में
उनके लिए
ईश्वर से
अंतिम वर माँगती
जन्मों तक पति रूप में
उनका ही वरण वो चाहती
क्योंकि एकमात्र
वो ही थे सच्चे पुरुष
पिता ने आजीवन माँ को
अपनी तरह ही माना
अहं को अपने आड़े नहीं लाये
स्त्री के अस्तित्व को सदा रहे वो सर उठाए।
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रश्मि जी बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। बधाई आपको
ReplyDeleteएक माँ की कहानी, बिटिया की जुबानी।वाह।
ReplyDeleteरश्मि जी स्त्री पुरुष के जीवन में ताल-मेल बैठाती और माँ के प्रति आपके ममता में भीगे भावों से युक्त , कविता मनमोहक लगी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावुक कर देने वाली कविता, रश्मि जी बहुत बधाई आपको💐💐👌👌💐💐
ReplyDeleteइस दुनिया की संपूर्णता सिर्फ माँ में रचती-बसती है,यही भाव आपकी इस रचना में शब्दांकित है। बधाई।
ReplyDeleteएक अच्छे और सच्चे सम्बन्ध की सुंदर अभिव्यक्ति, रश्मि जी को बधाई!
ReplyDeleteSunder bhav
ReplyDeleteRachana
बहुत सुंदर एवँ भावपूर्ण कविता रश्मि जी । हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर रचना है मैम।आपको दिल से बधाई।��
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता । बहुत बधाई
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteस्त्री विमर्श पर रची गई रचनाओं से अलग हटकर स्त्री सम्मान के लिए बेहतरीन भाव|
बधाई रश्मि जी !!
पिता ने आजीवन माँ को
ReplyDeleteअपनी तरह ही माना
अहं को अपने आड़े नहीं लाये
स्त्री के अस्तित्व को सदा रहे वो सर उठाए।
हर स्त्री ऐसा ही जीवन साथी पाने की कामना करती है। माँ के माध्यम से बहुत बड़ी बात कह गई आप,लाज़बाब सृजन
सादर नमन आपका
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई रश्मि जी।
हृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteएक सच्चे पुरुष का सही स्वरूप।
एक स्त्री का स्वयं ही वर्जनाएं चुनना,और समाज का वो ही पोंगा पंथी ढ़ंग । सब-कुछ बहुत सुंदर ढंग से शब्दों में ढ़ाला है आपने।
सुंदर सृजन।
हृदय स्पर्शी रचना रश्मि जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
मेरी रचना प्रकाशित करने हेतु सम्पादक जी का हार्दिक आभार एवं मेरी रचना को पसंद करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।
ReplyDeleteसादर-
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
दिल को छूने वाली इस भावपूर्ण कविता के लिए बहुत बधाई रश्मि
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