सन्ध्या झा
1- दिवाली
दीपक की रौशनी से रोशन होगा घर द्वार
आ गया देखो दिवाली का
्त्योहार ।
घर में माँ लक्ष्मी के
आने से पहले
घर की लक्ष्मी का मान कर लेना ।
उसका अनादर करके कहीं
न अपना अपमान कर लेना ।
माँ लक्ष्मी तुम्हें कुछ देना भी चाहे
तो कैसे वो दे पाएँगी
जो घर की लक्ष्मी को हताश वे पाएँगी ।
घर की साफ- सफाई के साथ
मन को भी साफ कर लेना ।
कहीं बाहर तुम कर देना ।
बाहर ही नहीं मन भी तुम्हारा
रौशन हो
तभी सही मायनों में
माँ लक्ष्मी का आगमन हो ।।
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2-संघर्ष
संघर्ष पथ एकाकी हो
तो इसमें क्या भ्रांति
हो ।
मुश्किलों से भरी राह
हो
तो इसमें क्यों उन्माद
हो।
चारों ओर अंधकार हो
तो इसमें क्यों संताप
हो ।
तू रोशनी अपने अंदर की
प्रज्वलित कर
फिर रात में भी दिन सी
बात हो ।
माना संघर्ष की जो राह
है
कठोर है पर तेरी आहटों
में भी तो शोर है ।
हर बाधा बाध्य होकर हट
जाएगी
संघर्ष कर तू एक बाधा
घट जाएगी ।
संघर्ष की राह तुझे विजय
तक ले जाए्गी ।।
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3-मैं मजदूर हूँ
मैं मजदूर हूँ जिसे कभी
प्यार नहीं मिलता
मैं मजदूर जिसे सबका स्वीकार
नहीं मिलता ।
मैं सृजनकर्ता हूँ पर
मुझे उस पर
कभी अधिकार नहीं मिलता
धूप हो या छाँव हो मेरे
लिए
एक समान हो हर क्षण कर्म
पथ पर चलकर भी मुझे कभी
विश्राम नहीं मिलता ।
मैं मजदूर हूँ जिसे कभी
प्यार नहीं मिलता
मैं मजदूर हूँ जिसे कभी
स्वीकार्य नहीं मिलता ।
जब देश में फैली महामारी
हो
हमारे चारो ओर लाचारी
हो
परिस्थितियाँ हम पर भारी
हो
इस देश में हमको कहीं
आधार नहीं मिलता ।
मैं मजदूर हूँ मैं मजबूर
हूँ
मुझे कभी प्यार नहीं मिलता
मुझे कभी स्वीकार्य नहीं
मिलता।
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सुंदर भावाभिव्यक्ति!
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Deleteसुंदर काव्य
ReplyDeleteसुंदर रचनाएं, शुभकामनाएं।
ReplyDelete--परमजीत कौर'रीत'
उत्कृष्ट भावों की उम्दा अभिव्यक्ति । एक सुंदर संदेश देती कृतियाँ । साधुवाद संध्या जी ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ ,विशेषकर मजदूर कविता ।बहुत-बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन , रोशनी और मज़दूर का संघर्ष सदा से ही वंदनीय रहा है ।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन है संध्या जी हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई सन्ध्या जी.
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं के लिए बहुत बधाई संध्या जी
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