1- कृष्णा
वर्मा
वक़्त
ग़ज़ब का हुनरमंद है वक़्त
लम्हा-लम्हा
ख़ारिज़ करता है तुम्हें तुम से
मजाल है जो होने दे कभी
देह को इसका अहसास।
बूँद-बूँद रिसती जाती है उम्र
तुम्हारी होंद से
उस पर कमाल कि
कोई नामोनिशान नहीं टीस का।
आशाओं की सुरीली सरगम में
कब बज उठे अशंकाओं के
बेसुरे तार
यह तो जाने वही कारसाज़।
वाह रे नागर
कभी सांत्वनाओं की थपकी देके
कर देता है उत्सवी जीवन
और कभी
ज़मीन ही निकाल लेता है
पग तल से।
जिंदगी फिर भी झूलती रहती है
पैंडुलम सी
उम्मीदों और दिलासों के बीच।
अनजाने में जीती
पल-पल हलाल होती ज़िंदगी
कब रख पाती है
उम्र का हिसाब।
-0-
2- सत्या शर्मा 'कीर्ति'
प्यार मुझे तुम करना ऐसे
मूँगफली के दानों हो जैसे
काजू अख़रोट भरे हो वैसे
अमरूद-सा भी स्वाद मिला हो
प्यार मुझसे तुम करना ऐसे ।।
थोड़ा बादल भी छाया हो
रिमझिम पानी भी बरसा हो
सोंधी मिट्टी की खुशबू हो जैसे
प्यार मुझसे तुम करना ऐसे ।।
भाव मनाने के न आते मुझको
रूठना भी नहीं भाता तुझको
दौड़ते - भागते रहें संग दोनों
प्यार मुझे तुम करना ऐसे।।
-0-
बूँद-बूँद रिसती जाती है उम्र
ReplyDeleteतुम्हारी होंद से
उस पर कमाल कि
कोई नामोनिशान नहीं टीस का।वाह! कृष्णा जी बहुत सुंदर, भावपूर्ण कविता ।दिल को छू गई ।बधाई
सत्या जी बहुत बढ़िया कविता! बधाई आपको।
कृष्णा जी, सत्या जी बहुत सुन्दर रचनाएँ। आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteकृष्णा जी एवं सत्या जी को बधाइयाँ
कृष्णा जी ने वक़्त और उम्र के रिश्ते को कितनी गहनता से बयान किया है. सच, ऐसा ही तो होता है ...
ReplyDeleteकभी सांत्वनाओं की थपकी देके
कर देता है उत्सवी जीवन
और कभी
ज़मीन ही निकाल लेता है
पग तल से।
अहा! सत्य जी के कितने खूबसूरत एहसास ...
मूँगफली के दानों हो जैसे
काजू अख़रोट भरे हो वैसे
अमरूद-सा भी स्वाद मिला हो
प्यार मुझसे तुम करना ऐसे ।।
आप दोनों को बहुत बधाई.
कृष्णा जी आपकी कविता में पर्वत की ऊंचाई है और सागर की गहराई है | अति सुंदर -श्याम हिन्दी चेतना
ReplyDeleteसत्या जी आपकी प्रेम की कविता में जो नयी उपमा मूंगफली के दानों से की गयी है | अनुमान लगाना कठिन है कि आपकी कल्पना की उड़ान अतुलनीय है | तवियत खुश हो गयी पढकर आपकी रचना | ढेर सारी बधाई |श्याम हिन्दी चेतना
बहुत सुंदर रचनाएं,कृष्णा वर्मा जी एवं सत्या शर्मा 'कीर्ति'जी को बहुत बधाई।
ReplyDelete-परमजीत कौर'रीत'
कृष्णा जी बहुत खूब रचना की है वक्त सच में खारिज करता है तुम्हें तुमसे..बहुत सुन्दर भाव हैं सत्या जी आपकी कविता ने भी मन मोह लिया दोनों को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत सुंदर,मनमीहक रचनाएँ...कृष्णा जी एवँ सत्या जी को बहुत-बहुत बधाई!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना... बधाई सत्या जी।
ReplyDeleteआ० भाई काम्बोज जी तथा आप सभी का बहुत आभार।
ReplyDeleteकृष्णा जी और सत्या जी की बेहद खूबसूरत कविताएँ, बहुत आनन्द आया। आप दोनों को ढ़ेरों बढ़ाईं!
ReplyDeleteकृष्णा जी ने जैसे एक अनजाने-अनकहे से सच को हम सबके सामने लाकर बेहद खूबसूरती से रख दिया |
ReplyDeleteसत्या जी ने मनमोहक पंक्तियों से बहुत आनंद दिया |
आप दोनों को बहुत बधाई...|