1-इन दिनों
मंजूषा मन
इन दिनों
हवा कुछ अधिक झूम रही
है
किसी महँगे परफ्यूम
में भी नहीं है ऐसी महक
जिस महक से महमहा रही
है हवा।
इन दिनों
आसमान के अंतिम कोने
में
लटका सबसे छोटा तारा
भी
चमक रहा है अपनी पूरी
चमक से,
कुछ अधिक ही जगमगा
रहा है
चाँद
इन दिनों
चिड़ियों की चहचहाहट
में
साफ सुनाई देने लगे
हैं
इनके गीत,
पेड़ों की कोटर से
निकल
रंग बिरंगे पंछी
अठखेलियाँ करने लगे
हैं
इस डाल से उस डाल।
इन दिनों
बीच सड़क पर
ऊँघ
रहे
शहर के सभी पशु
कुचले जाने के डर से
मुक्त।
इन दिनों
धरती ले रही है
साँसें
शुद्ध साफ हवा में।
इन दिनों
लहलहा रहे हैं पड़े
मिल रही है पूरी
ऑक्सीजन
पत्तियों को
प्रकाश संश्लेषण के
लिए,
इन दिनों
आदमी बन्द है घरों
में
नहीं देख पा रहा
प्रकृति के निखरे रंग,
इन दिनों
सहमा हुआ है आदमी
डर रहा है आदमी से,
इन दिनों
घर में रह
आदमी कर रहा है दुआ
जीवित बचे रहने की।
-0-
2-मुकेश बेनिवाल
1
कल रफ़्तार से शिकवा
था
आज ठहरने से शिकायत
है
हर वक़्त जिन्दगी से
गिला
कहाँ तक जायज़
है…....
2
सोचा नहीं था
कि मुलाकातें .....
इतनी महँगी हो जाएँगी
अपनी एवज़ में
जिन्दगी माँगने
लगेंगी।
-0-
- मुकेश
बेनिवालmukeshbeniwal94415@gmail.com
-0-
3-बिखराव
सत्या शर्मा ' कीर्ति '
बिखरी पड़ी थी
पटरियों पर रोटियाँ
अनाथ -सी
पर कहीं नहीं था कोई अपने गमछे में
छुपा कर
सहेजने बाला
नहीं था
दो वक्त की उसकी जुगाड़ में पूरे परिवार को छोड़
हाड़ तोड़ मेहनत करने बाला
नहीं था अब कोई मीलों चलकर घर
पहुँचने बाला
हाँ , यह तो
बुद्ध पूर्णिमा की रात की गोद से निकलती सुबह थी
आकाश अब भी भरा था सोलह कलाओं से युक्त
चमकते चाँद की अद्भुत चाँदनी से
या सभी मजदूर
अनवरत चलते - चलते गहन ज्ञान की प्राप्ति कर
बोधिसत्व को प्राप्त हो गए।
पर इस अनचाही हत्या का गवाह चाँद
क्यों बादलों में मुह छुपाए बैठा रहा ?
क्यों नहीं नन्हा सूरज जल उठा देख भयावह मंजर ?
बुद्ध क्यों नहीं जाग गए
बिखरी रोटियों के चीत्कार से
आकाश का कलेजा क्यों नहीं काँप
गया ?
रोटियों के आँसू बार - बार पूछ रहे हैं अनेकों सवाल
हाँ ,सिसक रही हैं रोटियाँ
क्योंकि वो जानती हैं इन मजदूरों की नजर में अपनी इज्ज़त
रोटियाँ जानती हैं उन्हें पाने के लिए मजदूरों के अथक मेहनत
रोटियाँ पहचानती है अपने प्रेमी को
आज सच में विधवा
हो गयी रोटियाँ
पर इनकी सुबकियों की गूँज
दूर तक
पीछा करती रहेगी
मेरा , तुम्हारा
हम सभी का
--0--
सत्या जी निःशब्द हूँ।
ReplyDeleteमुकेश जी शिकायत का शिक़वा ख़ूब कहा।
मन जी बधाई कविता की
हार्दिक धन्यवाद अनिता जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमंजूषा जी...सुंदर कविता!
ReplyDeleteमुकेश जी... सही है! हर बात पर गिला करने का इंसान का स्वभाव बन गया है!
सत्या जी... मार्मिक रचना!
सुंदर सृजन के लिए आप सभी को हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
हार्दिक आभार अनिता जी
Deleteमंजूषा जी, वाकई बहुत कुछ बदला है,बात-बात में शक्ति का प्रदर्शन करने वाला मनुष्य स्वयं ही बंदी बन गया है। आपने इस आकस्मिक बदलाव को बड़ी खूबसूरती से बयान किया है ।मुकेश बाला जी ने मनुष्य के शिकायती स्वभाव को अच्छा उलाहना दिया है । सत्या जी ने बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है, सचमुच एक मेहनत कश को ही रोटी का असली मूल्य पता होता है ।घर पहुँचने की जल्दी में ये मजदूर कितना दूर निकल गये। आप सभी को बधाई ।
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यवाद आपका
Deleteमंजूषा दी बदलते वातावरण का सुंदर चित्रण ।
ReplyDeleteमुकेश जी
बहुत सुंदर शिकायतें ।
सत्याजी बेहद
मर्मस्पर्शी ,भावपूर्ण कविता।
आप सभी को हार्दिक बधाई ।
हृदय से आभारी हूँ दी 🙏
Deleteमंजुषा जी वाकई इन दिनों सब खास है, सुंदर कविता!
ReplyDeleteमुकेश जी आपकी क्षणिकाएँ बहुत लाजवाब!
सत्या जी बहुत ही भावपूर्ण कविता!!
आप सभी को मेरी ओर से बधाई।
हार्दिक धन्यवाद प्रीति जी
Deleteमेरी भावनाओं को स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद भैया जी 🙏🙏
ReplyDeleteमंजूषा जी , मुकेश जी आपको भी उत्कृष्ट सृजन हेतु हार्दिक धन्यवाद ।
मेरी भावनाओं को स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद भैया जी 🙏🙏
ReplyDeleteमंजूषा जी , मुकेश जी आपको भी उत्कृष्ट सृजन हेतु हार्दिक बधाई
वर्तमान को अलग अलग बिंदुओं से रेखांकित करती तीनों ही कविताएँ उत्कृष्ट एवम संवेदना को स्पर्श करने वाली हैं,इस महामारी ने हमारे समय,समाज और प्रकृति को एकदम से बदल दिया है,इस बदलाव में ठहराव है,निखरती हुई प्रकृति है,तमाम त्रासदायक घटनाएँ हैं,इन्हें क्रमशः मुकेश जी,मंजूषा जी एवम सत्या जी ने अत्यंत मर्मस्पर्शी रूप में चित्रित किया है,सभी को बधाई
ReplyDeleteतीनों रचनाएँ वर्तमान समय को दर्शाती हुई बहुत संवेदनापूर्ण है. आप तीनों को बहुत बधाई.
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ReplyDeleteमंजूषा जी, मुकेश जी, सत्याजी, आज के समय की सत्यता को खूबसूरती से उभारती
सुन्दर, मर्मस्पर्शी तथा भावपूर्ण कविताएँ ... आप सभी को हार्दिक बधाई !
बहुत मर्मस्पर्शी रचनाएँ...| आप सभी को हार्दिक बधाई...|
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