रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
छोटी-सी
अँजुरी में हम
सारा आकाश भरें ।
पोर -पोर में
सौ-सौ सूरज-
का उजियार भरें ।
आँसू की
धरती से निकलें
मुस्कानों की कोंपल
अंगारों की
खिलें गोद में
संकल्पों के शतदल
पलक-कोर पर
उतर चाँदनी
नित सिंगार करे ।
बन्धन के
महलों में घुटता
पाखी
व्याकुल मन का
मिल जाए बस
कोई कोना
हमको निर्जन वन का
जितना हो
सुख दे दें
जग को
जीभर प्यार करें ।
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( सन्दर्भ: रचना 25
मई 1992, प्रकाशन:तारिका मासिक-अप्रैल-93,विश्व ज्योति-अप्रैल -मई 93, देशबन्धु-22-9-94,
प्रसारण:आकाशवाणी-अम्बिकापुर
31-10-1998)
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बहुत सुंदर रचना ... 😊👌
ReplyDeleteछोटी सी अँजुरी मेंहम ,सारा आकाश भरें। आशा का संचार करती बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteकितनी सुंदर है, वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं सार्थक सृजन 🙏🙏
ReplyDeleteसदाबहार रचना,जितना हो सुख दे दें जग को, जी भर प्यार करें.....हर युग की यही आवश्यकता!बधाई स्वीकारें!
ReplyDeleteआँसू की धरती से निकले
ReplyDeleteमुसकानों की कोपल।वाह!!बहुत सुन्दर रचना ।बधाई आदरणीय ।
उम्मीदों का दामन थामे जीवन की कविता । सुंदर , बधाई ।
ReplyDeleteआँसू की/धरती से निकलें/मुस्कानों की कोंपल....
ReplyDeleteआशा जगाती बहुत सुंदर रचना
बधाइयाँ
वाह भाई कम्बोज जी सुन्दर बात आंसू की धरती से निकले मुस्कानों की कोपल ... हार्दिक बधाई स्वीकारें |
ReplyDeleteबेहद सुंदर रचना... बधाई भाईसाहब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता। आवरण चित्र भी बहुत खूबसूरत लग रहा है।
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर रचना !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,माधुर्य रस पूर्ण कविता । बधाई हिमांशु भाई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना! जितना बाँट सकें सुख, उतना बाँटें सब ... फिर कितना प्यारा हो जाएगा सारा जग!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय भैया जी, यह रचना साझा करने हेतु!
~सादर
अनिता ललित
सार्थक और प्रेरक भाव ...
ReplyDeleteपोर -पोर में
सौ-सौ सूरज-
का उजियार भरें ।
सुन्दर रचना के लिए बधाई भैया.
जितना हो
ReplyDeleteसुख दे दें
जग को
जीभर प्यार करें ।
अगर सब कोई इस भावना के साथ जिए तो फिर दुनिया में दुःख को रहने की जगह ही नहीं मिल पाएगी...| इस प्यारी सी रचना के लिए बहुत बधाई...|
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवँ सार्थक रचना भैया जी !