प्रदूषण (अहीर छंद)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
बढ़ा प्रदूषण जोर।
इसका कहीं न छोर।।
संकट ये अति घोर।
मचा चतुर्दिक शोर।।
यह दारुण वन-आग।
हम सब पर यह दाग।।
जाओ मानव जाग।
छोड़ो भागमभाग।।
जंगल किए विनष्ट।
सहता है जग कष्ट।।
प्राणी रहे कराह।
भरते दारुण आह।।
धुआँ घिरा विकराल।
ज्यों उगले विष व्याल।।
जकड़ जगत निज दाढ़।
विपदा करे प्रगाढ़।।
गूगल से साभार |
दूषित नीर-समीर ।
जंतु समस्त अधीर।।
संकट में अब प्राण।
उनको कहीं न त्राण।।
विपद न यह लघुकाय।
शापित जग-समुदाय।।
मिल-जुल करें उपाय।
तब यह टले बलाय।।
-0-
श्रद्धेय बासुदेव जी नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी छंदबद्ध -वातावरण को प्रदूषित और नष्ट करने भावना को आपने बड़ी ही सुन्दरता से जाग्रत किया है | आपका सन्देश विश्व के लिए एक ठोस विचार लेकर प्रस्तुत किया गया है| वृक्षों में भी जीवन होता है | उन्हें काटना या उन्हें आग जलाकर नष्ट कर देना बड़ी ही अमानवता है | आज ऐसे संदेशों की विश्वव में परम आवश्यकता है | इसके लिए आप धयवाद के पात्र हैं | श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना
बहुत ही सार्थक और सामयिक रचना हेतु हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना...बासुदेव अग्रवाल जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना...बासुदेव अग्रवाल जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteदूषित नीर-समीर ।
ReplyDeleteजंतु समस्त अधीर।।
संकट में अब प्राण।
उनको कहीं न त्राण।।
bahut sunder
badhayi
rachana
श्री वासुदेव जी अहीर छंद में प्रदूषण पर लिखी अत्यधिक सुन्दर रचना है आपको हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteप्रदूषण प्रेरक कविता। नमन जी को बधाई।
ReplyDeleteबढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करती बहुत बढ़िया रचना...हार्दिक बधाई बासुदेव अग्रवाल जी।
ReplyDeleteप्रदूषण इस युग की विकराल समस्या है जिसने मानव के अस्तित्व के सम्मुख ही संकट खड़ा कर दिया है,वासुदेव शरण जी ने बहुत प्रभावी ढंग से इस समसिस7 को छंदों के माध्यम से व्यक्त किया है,बधाई हो वासुदेव जी।
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सामयिक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय !!
इन सार्थक पंक्तियों के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDelete