पथ के साथी

Monday, May 27, 2019

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रमेशराज

कहीं पर आँख में लालच कहीं दृग-बीच पानी है
वही टीवी का चक्कर है, वही फ्रिज की कहानी है।

न ला साथ जो भी धन , बहू कुलटा-कलंकिन है
न जीवन-भर बिना दौलत पुकारी जा रानी है।

कहाँ स्टोव ने इक दिन बहू से इस तरह हँसकर
खतम तेरी लपट के बीच ही होनी जवानी है।

दहेजी -दानवों ने कब समय का सार समझा ये
कि उनकी लाडली भी तो कभी ससुराल जानी है।

पिता को उलझनें भारी जहाँ बेटी सयानी है
जहाँ पर है जवाँ बेटा वहाँ पर बदगुमानी है।
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2 comments:

  1. बहुत मार्मिक रचना, हार्दिक बधाई

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  2. आज के सच को दर्शाती एक बढ़िया रचना.... हार्दिक बधाई रमेशराज जी !

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