नदी के आगोश में
डॉ कविता भट्ट
1
लिपटा वहीं
घुँघराली लटों में
मन निश्छल,
चाँद झुरमुटों में
न भावे जग-छल ।
2
चित्र :रमेश गौतम |
ढला बादल
नदी के आगोश में
हुआ पागल
लिये बाँहों में वह
प्रेमिका -सी सोई।
3
मन वैरागी
निकट रह तेरे
राग अलापे,
सिंदूरी सपने ले
बुने प्रीत के
धागे।
4
मन मगन
नाचता मीरा बन
इकतारे -सा
बज रहा जीवन
प्रीत नन्द नन्दन!
5
रवि -सी तपी
गगन पथ लम्बा
ये प्रेमपथ ,
है बहुत कठिन
तेरा अभिनन्दन!
सुंदर रचनाएँ कविता जी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन कविता जी
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
हार्दिक आभार अनिता जी एवं सत्या जी।
ReplyDeleteBahut sundar bahut bahut badhai
ReplyDeleteहार्दिक आभार डॉ भावना जी।
ReplyDeleteकविता जी, बहुत प्यारा लिखा है आपने...| मेरी बधाई स्वीकारें...|
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