चाँद फिर-फिर आएगा
-प्रियंका गुप्ता
सूरज से पूछ रस्ता, चाँद अपने घर
गया
लोग ये समझे बिचारा, रोशनी से डर
गया
कर वादा रौशनी का, जब रात को आया
नहीं
इल्ज़ाम अँधेरे का लो, बादलों के सर
गया
डगमगा जाते हैं पाँव, घुप्प अँधेरे
में अगर
लोग सबसे पूछते हैं, रहनुमा किधर
गया
गाँव की मिट्टी अब बच्चों को भाती ही नहीं
पढ़-लिखके हर सितारा, चाँद बनने शहर
गया
क़हर बनके बिजलियाँ, हिला डालें आसमाँ
चाँद फिर-फिर आएगा, न कहना कि वो
मर गया ।
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सहज व सुंदर
ReplyDeleteसुंदर रचना,बधाई!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-08-2018) को "जीवन अनमोल" (चर्चा अंक-3074) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आप सभी के उत्साहवर्द्धन के लिए दिल से शुक्रिया...| आदरणीय काम्बोज जी ने मेरी रचना को यहाँ स्थान दिया, उसके लिए उनको बहुत बहुत आभार...|
ReplyDeleteBahut sundar bahut bahut badhai ..
ReplyDeleteशुक्रिया
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