1-शरीफ़ और बदमाश मर्द
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
शरीफ़ होते हैं वे मर्द
जो आपके बिल्ली और कुत्ते का
हालचाल पूछते हैं
उनके बीमार होने पर
सहानुभूति जताते हैं
उनके मर जाने पर
टेसुए बहाते हैं
और इस तरह निकटता बढ़ाते हैं
आपके जीने -मरने
रोने -धोने से
उनका कोई नाता नहीं होता।
वे जब आपके घर आते हैं
आपके कुत्ते या बिल्ली को
जीभर चूमते हैं
उस समय उनके मन में
कुत्ते-बिल्ली नहीं ,
बल्कि एक औरत होती है
होता है उसका एक शरीर
और वे होते हैं
भेड़ की खाल में छिपे
रक्त पिपासु भेड़िए,
शिकार की तलाश में
जीभ लपलपाते हैं;
वे मर्द बदमाश होते हैं -
जो पूछते हैं-
‘आप अब कैसे हैं?
दवाई ली या नहीं,
आराम भी कर लेना,
मेरे लायक कुछ भी हो
ज़रूर बता देना।’
वे किसी मन्दिर नहीं जाते ;
लेकिन मन ही मन
तुम्हारे लिए दुआओं के मन्त्र पढ़ते हैं
तुम्हारा समाचार न मिलने पर
सो नहीं पाते हैं
तुम्हारी एक आह और कराह को
सात समन्दर पार से भी जान जाते हैं
तुमको छूते हैं ऐसे
जैसे कोई भक्त
मत्था टेककर मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ता हो,
जैसे कोई तितली छूती है
फूल की कोमल पाँखुरी,
तुम्हारा माथा छूकर या चूमकर
केवल आशीष बरसाते हैं
तुम्हारी हर संवेदना को
बाहर के काँटों से बचाते हैं
लहूलुहान हो जाते हैं उनके हाथ
दिल हो जाता है तार-तार
लोगों के व्यंग्य-बाणों से
फिर भी मुस्कुराते हैं ।
वे बदमाश मर्द
अपनों के बीच भी
खलनायक नज़र आते हैं
हर पल ज़हर पीते हैं
ज़हर के कारण न जी पाते
और तुम्हारी दुआओं के कारण
मर भी नहीं पाते हैं
खुद भोगते हैं मरणान्तक पीड़ा
तुम्हें शायद नहीं मालूम
कि
तुम्हारे दर्द में सो नहीं पाते हैं,
सचमुच ऐसे मर्द बदमाश होते हैं।
-0-(8 जुलाई-18)
-०-
2-बस तुम आ जाना
सत्या शर्मा ' कीर्ति '
जब बसंत का मौसम बीता जाए
मन पर मेरे पतझड़ सा छाए
उस तपते - थकते मौसम में भी
रिमझिम बूँदों के जैसे ही तुम
बन बदरा मुझे भिगो जाना ।।
जब डालों पर न कलियाँ चटके
न बागों में कोई चिड़िया चहके
जब सूखी हो माला की लड़ियाँ
तब बन पराग मेरी मन बगिया में
मुझको तुम सुरभित कर जाना ।।
जब जीवन नदिया हो सूख रही
जब मन की लहरें हों रूठ रही
जब बसंत का मौसम बीता जाए
मन पर मेरे पतझड़ सा छाए
उस तपते - थकते मौसम में भी
रिमझिम बूँदों के जैसे ही तुम
बन बदरा मुझे भिगो जाना ।।
जब डालों पर न कलियाँ चटके
न बागों में कोई चिड़िया चहके
जब सूखी हो माला की लड़ियाँ
तब बन पराग मेरी मन बगिया में
मुझको तुम सुरभित कर जाना ।।
जब जीवन नदिया हो सूख रही
जब मन की लहरें हों रूठ रही
तब प्यास से आतुर तन -मन में
अमृत कलश -सा बन कर तुम
बूँद -बूँद बन छलका जाना ।।
हृदय -कोंपल के खिल जाने पर
अमृत कलश -सा बन कर तुम
बूँद -बूँद बन छलका जाना ।।
हृदय -कोंपल के खिल जाने पर
दिलों की धड़कन मिल जाने पर
विश्वास रोप अधरों
पर मेरे
बेशक फिर तुम चले ही जाना।।
हाँ , एक बार
तो फिर आ जाना ।
-०-
Kamboj ji bahut bhavpurn savednaon ko jhkajhor kar rakh deni vali rachna hai bahut sahi kaha aapne aapke lekhn ko prnam,satya ji aapki rachna bhi bahut achchhi lagi aapko bhi bahut bahut badhai...
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती कविता भैया जी । मन को झझकोरती हुई ।
ReplyDeleteसाथ ही मेरी भी कविता को स्थान देने के लिए सादर आभार ।
हार्दिक धन्यवाद भावना जी
वाह ! भैया कमाल की रचना !!
ReplyDeleteतुमको छूते हैं ऐसे
जैसे कोई भक्त
मत्था टेककर मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ता हो,
जैसे कोई तितली छूती है
फूल की कोमल पाँखुरी,
तुम्हारा माथा छूकर या चूमकर
केवल आशीष बरसाते हैं ...
अद्भुत ...!!
बहुत बधाई भैया इस रचना के लिए ...(हरकीरत हीर
झकझोर देने वाली कविता सर... वाकई हमारे समाज के मापदंड बहुत अजीब हैं... हर बात पर.. हर धर्म में... हर मज़हब में.. हर पाठशाला में... प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं पर प्रेम के असली अर्थ भी नहीं जानते।
ReplyDeleteव्यंग्य है यह कविता... आक्रोश और व्यथा भी
कईं बार पढ़ी काम्बोज जी की कविता
ReplyDeleteकितना सही विश्लेषण किया है उन्होंने शरीफ़ और बदमाश मर्दों का । अंतस में शोर मचाती बेहद शानदार रचना ।
सत्या जी को बेहद सुंदर और मार्मिक कविता के लिए बधाई
समाज के बदलते रंग बदलती सोच को बहुत सुन्दर ढ़ंग से प्रस्तुत है काम्बोज जी । मर्म को छूने वाली , समाज को सोचने पर विवश करने की शक्ति रखने वाली रचना है यह ।यही हो रहा है आजकल ।लोग बहुत मॉडर्न होने लगे हैं ।
ReplyDeleteबस तुम आ जाना सत्या शर्मा जी की रचना भी मन के भावों को प्रस्तुत करती बहुत सुन्दर रचना है ।
ReplyDelete'शरीफ और बदमाश मर्द' पीड़ा भरे शब्दों से कटु सत्य को अनावृत करती अद्भुत रचना !
ReplyDelete'बस तुम आ जाना' राग-अनुराग भरी सुन्दर मनुहार !
दोनों रचनाकारों को सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई !
’शरीफ और बदमाश मर्द’ अंतस को झकझोरने वाली मार्मिक कविता।
ReplyDeleteसत्या जी बेहद सुंदर भावपूर्ण कविता।
आप दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ह्रदय से सबका बहुत -बहुत आभार
ReplyDeleteअत्यंत उत्तेजक एवं आक्रामक कटाक्ष करता सृजन समाज की वास्तविकताको अधनंगा कर रहा है।नमन आदरणीय सर
ReplyDeleteमन की आकुलता को तृप्त करता मनभावन सृजन सत्या जी।
ReplyDeleteहृदय से निःसृत रचनाओं हेतु बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार डॉ.पूर्णिमा राय और डॉ.कविता भट्ट जी
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत ही सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteपूर्वा शर्मा
ह्रदयतल तक झझकोरने वाली रचना पढ़ कर वास्तविकता और समाज में फैले कटु सत्य के प्रति भर्त्सना और विषाद की भावना पैदा हुई | एक नहीं दो बार पढ़ी भैया आपकी कविता ताकि मर्म की तह तक पहुँच सकूँ | ऐसा लेखन तो सचमुच एक चेतना जगाने वाला लेखन है | बधाई एवं शुभकामनाएँ आदरणीय काम्बोज भाई |
ReplyDeleteसत्य जी की प्रेम के विभिन्न रूप दर्शाती रचना मनमोहक लगी | आप दोनों को बधाई |
हिमांशु भाई की कटुसत्य को दर्शाती भावपूर्ण अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई । सत्या जी की प्रेम को दर्शाते सुन्दर उद्गार । बधाई लें ।
ReplyDeleteसत्या जी को एक अच्छी रचना के लिए बधाई...|
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज जी...बस निःशब्द हूँ...|