पथ के साथी

Wednesday, August 29, 2018

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                  व्यथा
शशि पाधा

धरती रोती ,पर्वत रोते, रो रही चारों दिशाएँ
मानवता की बलि चढ़ी है, रो रही हैं भावनाएँ।

जल रहा कश्मीर आज, सुलगा हिन्दोस्तान है
इंसानियत को क्यों भूलता जा रहा इंसान है ।

श्वेत रक्त हो चला आज , आतंक शस्त्र ले खड़ा
आदमी को मारने क्यों आदमी ही चल पड़ा।

किस दिशा से उड़ चलीं, विनाश की आँधियाँ
जल रही कितनी चिताएँ, गहरा रहा है धुँआँ

पुँछ गए सिन्दूर कितने, माँ की आँख रो रही
उदास सा बचपन खड़ा, बहना राखी ले खड़ी।

संहार का अंधेर आज हर तरफ है छा रहा
आदमी हैवान बन कहर कितना ढा रहा ।

प्यार पलता था जहाँ, वो देश यूँ वीरान क्यों
फूल खिलते थे जहाँ वो बाग़ अब श्मशान क्यों

सूने से घर-गाँव हैं, सिसकी गेहूँ की बालियाँ
मौन हुईं गलियाँ चौपालें, सूनी दीप थालियाँ ।

गौतम की धरती पर आज, हिंसा तांडव कर रही
गाँधी के आदर्शों की देखो होली आज जल रही।

अंत हो अधर्म का अब, एकता का राज हो
नाश हो  हर पाप का, एकता अधिराज हो ।

हो अंत काली रात का, आतंक का  भी हो दमन
है प्रार्थना अब ईश से, चिरसुख का हो आगमन।
-0-
2-क्षणिकाएँ 
ज्योत्स्ना प्रदीप 

1-सीख 

माँ ने कहा था -
"बेटी 
सब सहना 
  और हाँ.... 
'अच्छे सेरहना" !!

2-उदारता 

उदारता  की 
यही तो अदा है 
वो पेड़ झुक गया 
जो 
 फलों  से लदा  है !

3- फ़र्क 

ओ छुईमुई.. 
इस दौर में भी 
तेरी सकुचाहट  में 
कोई  फ़र्क  नज़र नहीं 
आता है !
कुछ सीखो नागफनी से... 
उससे उलझने से तो 
विषधर भी कतराता  है !!

4- खूबसूरत  मंज़र 

बेहद खूबसूरत  मंज़र  था 
कल चाँदनी रात !
इक बेल लिपट गई थी 
पौधे से जैसे   
शरीक -  - हयात !

5-आँसू 

बदलियों ने 
जब दरख़्तों को 
अपने आँसू  भेजे 
तो कुछ ने
अपनी खोखल में 
अब   तक   हैं  सहेजे  !

6- सुकून 

ज़हन में 
बड़ा सुकून होता है 
जब दिल  में 
इन्सानियत ज़िंदा  रखने का 
जुनून होता है !
-0-

10 comments:

  1. शशि जी समसामयिक उम्दा रचना।
    ज्योत्स्ना प्रदीप जी उत्तम क्षणिकाएँ।

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  2. शशि जी एवं ज्योत्स्ना जी सुन्दर सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई |
    पूर्वा शर्मा

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  3. अपनी माटी से जुड़े मन का बहुत भावपूर्ण चिंतन , बधाई शशि दीदी !
    सभी क्षणिकाएँ एक से बढ़कर एक , हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी !

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  4. शशि जी की रचना बेहद सामयिक है, बधाई.

    ज्योत्स्ना जी ने बहुत खूबसूरत क्षणिकाएँ लिखी हैं. 'सीख' में कितना गज़ब का लिखा है. एक माँ की पीड़ा और समझौते का चित्रण - सब सहना और अच्छे से रहना.

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  5. शशि जी बहुत खूब लिखा आपने !देश का हर दुःख ,व्यथा अब चिरसुख में बदल जाये ..ऐसी ही हमारी भी प्रार्थना v है ईश से !!
    सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई आपको !

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  6. तहे दिल से आभारी हूँ भैया जी की साथ ही आप सभी की जो अपना अमूल्य समय निकालकर टिप्पणी करते हैं!ये स्नेह बनाये रखियेगा !

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  7. बेहद मार्मिक रचना शशि जी
    बहुत सुंदर क्षणिकाएं ज्योत्सना जी

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  8. शशि जी एवं ज्योत्स्ना जी को सुन्दर सृजन हेतु हार्दिक बधाई।

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  9. उम्दा रचना और ख़ूबसूरत क्षणिकाओं के लिए शशि जी, ज्योत्स्ना जी को हार्दिक बधाई।

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  10. शशि जी, यह व्यथा सचमुच व्यथित करती है | सुन्दर रचना के लिए बधाई...|
    ज्योत्स्ना जी, सभी क्षणिकाएँ बहुत उम्दा हैं, ख़ास तौर से ये बहुत पसंद आई...
    माँ ने कहा था -
    "बेटी
    सब सहना
    और हाँ....
    'अच्छे से' रहना" !!
    हार्दिक बधाई...|

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