पथ के साथी

Monday, February 26, 2018

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अपने और सपने
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बहुत चोट देते हैं
बाहर -भीतर 
जीकर-मरकर
शायद यही अपने कहलाते हैं
जी भर रुलाते हैं
फिर भी इनका मन नहीं भरता
इनकी बातों से ऐसा कौन है
जो हर रोज़ नहीं मरता।
मरा हुआ  जानकर भी
तरस नहीं खाते हैं
इसीलिए अपने कहलाते हैं।
सपने-
आदमी को रोज़ मारते हैं
अगर सपने में भी
किसी का दु:ख पूछा
किसी का दर्द -भरा माथा सहलाया
किसी  व्यथित के आँसू पोंछ दिए
या किसी के सुख का सपना 
पाल लिया
या किसी का दर्द
अपनी झोली में डाल लिया
तो आपको मारा जाएगा
आपके सपनों को मौत के घाट
उतारा जाएगा।
यह आपकी मर्ज़ी !
अगर आप सपने पालेंगे
अपनों से कुछ आशा रखेंगे
तो दण्डित किए जाएँगे-
शूलों पर लिटाए जाएँगे
आग पर तपाए जाएँगे
बहुत गहरे दफ़नाए जाएँगे
ताकि दया , ममता , मानव ,समता
सबको कहीं गहरे गड्ढे में 
दफ़्न कर दिया जाए
तब तुम्हें ही तय करना होगा
कि इस मानव देह में रहकर
कैसे जिया जाए!!!!
रोज़-रोज़ मरा जाए
या किसी एक तयशुदा दिन का
इन्तज़ार किया जाए।
-0-

16 comments:

  1. जीवन की कड़वी सच्चाई बयान करती कविताएँ

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  2. यथार्थ बोध करवाती बहुत ही मार्मिक रचनाएँ। हार्दिक बधाई ।

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  3. मंजु जी और कविता जी आप दोनों की उउत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत आभारी हूँ। जीवन जिस प्रकार हमें जीना पड़ता है,वही सच्चाई है। पुस्तकों में पढ़ी सारी बातें यहाँ मार खा जाती हैं।
    काम्बोज

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  4. दिल को छूती हुई मार्मिक कविता
    शायद जीवन यही है जिसका किसी तयशुदा दिन तक इन्तजार किया जाए।

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  5. दिल को छूती हुई मार्मिक कविता
    शायद जीवन यही है जिसका किसी तयशुदा दिन तक इन्तजार किया जाए।

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  6. आह भी! वाह भी! आदरणीय भैया जी! ऐसे अपनों से हर कोई त्रस्त है! न जीने देते हैं, न ही मरने देते हैं!
    इस ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  7. सुंदर प्रस्तुति।
    बात तो सच है भैया, लेकिन जीवन की खुशियां भी इन्हीं अपनों और सपनों से हैं.... कभी खुशी कभी गम :) हताश न हों, जो होना है वह होना है, जो आना है वह भी आना है, उसका इंतज़ार न करें, हर पल जिएं।
    कुछ पंक्तियां आरंभ की थी, अभी आधे में हैं, फिर भी साझा कर रही हूँ -
    जाने किसके इंतजार में जीवन गुज़ार देते हैं
    कुछ लोग कल के लिए आज को वार देते हैं

    सादर,
    भावना

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  8. बहन सत्या शर्मा जी अनिता ललित और भावना सक्सैना जी ,बहुत आभार । आपकी बातों से सहमत हूँ । क्या किया जाए, इस जग में रहना है , तो स्ब कुछ सहना है।

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  9. जिंदगी की एक कड़वी सच्चाई। अपने और सपने हीचोट पहुँचाते हैं पर मरहम भी लगाते हैं।सुंदर कविता।

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  10. जीवन का कटु सत्य कहती मार्मिक रचनाएँ दिल को छू गई। हार्दिक बधाई।

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  11. मरा हुआ जानकर भी
    तरस नहीं खाते हैं
    इसीलिए अपने कहलाते हैं।
    बहुत तीखा लेकिन सच्चा कटाक्ष है...| सबसे ज्यादा तो हमारे अपने ही हमको, हमारे सपनों को मारते हैं और उस पर मजबूरी ये कि अगर ऐसी मौत का मातम मनाते हुए हम कुछ करना चाहें, तो भी हम ही दोषी ठहराए जाते हैं...|
    इस दुनिया में शायद बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें ये नहीं सहना पड़ा होगा |

    दिल को सीधे छू लेने वाली बहुत सुन्दर रचना...| मेरी हार्दिक बधाई...|

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  12. जीवन के कड़वे सच की पीड़ा को बड़ी सरलता और सुन्दरता के साथ दर्शाती रचना भैया जी ...बहुत बधाई आपको !

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  13. बहुत बढ़िया

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  14. जीवन का कड़वा सच ..हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय भैया जी ।हार्दिक बधाई ।

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  15. जीवन के उस सत्य को आपने लिख दिया जो हमारा आपका सबका है. मन को छू गई रचना. आभार.

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  16. जीवन के कटु सत्य को कहती मार्मिक रचनाएँ ..भावपूर्ण सृजन की हार्दिक बधाई !

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