अपने और सपने
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत चोट देते हैं
बाहर -भीतर
जीकर-मरकर
शायद यही अपने कहलाते
हैं
जी भर रुलाते हैं
फिर भी इनका मन नहीं भरता
इनकी बातों से ऐसा कौन
है
जो हर रोज़ नहीं मरता।
मरा हुआ जानकर भी
तरस नहीं खाते हैं
इसीलिए अपने कहलाते हैं।
सपने-
आदमी को रोज़ मारते हैं
अगर सपने में भी
किसी का दु:ख पूछा
किसी का दर्द -भरा माथा
सहलाया
किसी व्यथित के आँसू पोंछ दिए
या किसी के सुख का
सपना
पाल लिया
पाल लिया
या किसी का दर्द
अपनी झोली में डाल
लिया
तो आपको मारा जाएगा
आपके सपनों को मौत के घाट
उतारा जाएगा।
यह आपकी मर्ज़ी !
अगर आप सपने पालेंगे
अपनों से कुछ आशा रखेंगे
तो दण्डित किए जाएँगे-
शूलों पर लिटाए जाएँगे
आग पर तपाए जाएँगे
बहुत गहरे दफ़नाए जाएँगे
ताकि दया , ममता ,
मानव ,समता
सबको कहीं गहरे गड्ढे में
दफ़्न कर दिया जाए
दफ़्न कर दिया जाए
तब तुम्हें ही तय करना
होगा
कि इस मानव देह में
रहकर
कैसे जिया जाए!!!!
कैसे जिया जाए!!!!
रोज़-रोज़ मरा जाए
या किसी एक तयशुदा दिन
का
इन्तज़ार किया जाए।
-0-
जीवन की कड़वी सच्चाई बयान करती कविताएँ
ReplyDeleteयथार्थ बोध करवाती बहुत ही मार्मिक रचनाएँ। हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteमंजु जी और कविता जी आप दोनों की उउत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत आभारी हूँ। जीवन जिस प्रकार हमें जीना पड़ता है,वही सच्चाई है। पुस्तकों में पढ़ी सारी बातें यहाँ मार खा जाती हैं।
ReplyDeleteकाम्बोज
दिल को छूती हुई मार्मिक कविता
ReplyDeleteशायद जीवन यही है जिसका किसी तयशुदा दिन तक इन्तजार किया जाए।
दिल को छूती हुई मार्मिक कविता
ReplyDeleteशायद जीवन यही है जिसका किसी तयशुदा दिन तक इन्तजार किया जाए।
आह भी! वाह भी! आदरणीय भैया जी! ऐसे अपनों से हर कोई त्रस्त है! न जीने देते हैं, न ही मरने देते हैं!
ReplyDeleteइस ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई!!!
~सादर
अनिता ललित
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबात तो सच है भैया, लेकिन जीवन की खुशियां भी इन्हीं अपनों और सपनों से हैं.... कभी खुशी कभी गम :) हताश न हों, जो होना है वह होना है, जो आना है वह भी आना है, उसका इंतज़ार न करें, हर पल जिएं।
कुछ पंक्तियां आरंभ की थी, अभी आधे में हैं, फिर भी साझा कर रही हूँ -
जाने किसके इंतजार में जीवन गुज़ार देते हैं
कुछ लोग कल के लिए आज को वार देते हैं
सादर,
भावना
बहन सत्या शर्मा जी अनिता ललित और भावना सक्सैना जी ,बहुत आभार । आपकी बातों से सहमत हूँ । क्या किया जाए, इस जग में रहना है , तो स्ब कुछ सहना है।
ReplyDeleteजिंदगी की एक कड़वी सच्चाई। अपने और सपने हीचोट पहुँचाते हैं पर मरहम भी लगाते हैं।सुंदर कविता।
ReplyDeleteजीवन का कटु सत्य कहती मार्मिक रचनाएँ दिल को छू गई। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमरा हुआ जानकर भी
ReplyDeleteतरस नहीं खाते हैं
इसीलिए अपने कहलाते हैं।
बहुत तीखा लेकिन सच्चा कटाक्ष है...| सबसे ज्यादा तो हमारे अपने ही हमको, हमारे सपनों को मारते हैं और उस पर मजबूरी ये कि अगर ऐसी मौत का मातम मनाते हुए हम कुछ करना चाहें, तो भी हम ही दोषी ठहराए जाते हैं...|
इस दुनिया में शायद बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें ये नहीं सहना पड़ा होगा |
दिल को सीधे छू लेने वाली बहुत सुन्दर रचना...| मेरी हार्दिक बधाई...|
जीवन के कड़वे सच की पीड़ा को बड़ी सरलता और सुन्दरता के साथ दर्शाती रचना भैया जी ...बहुत बधाई आपको !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजीवन का कड़वा सच ..हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय भैया जी ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteजीवन के उस सत्य को आपने लिख दिया जो हमारा आपका सबका है. मन को छू गई रचना. आभार.
ReplyDeleteजीवन के कटु सत्य को कहती मार्मिक रचनाएँ ..भावपूर्ण सृजन की हार्दिक बधाई !
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