कुछ है...
मंजूषा मन
कुछ है...
हवा के झोंके- सा
गुज़रा जो करीब से
महक उठा अन्तर्मन
बिखर गए इंद्रधनुषी रंग
खिल आई होंठों पर मुस्कान
चमक उठीं आँखें
खिल उठे फिर मुरझाए फूल
चहक उठे मन के पंछी
पंख फैलाने लगीं तितलियाँ
और तुम...
मेरे भीतर से होकर
दिल को चीरते हुए
गुज़र रहे हो...
पल -पल धँसते जा रहे हो
तीर से,
टीस रहा कुछ
अजीब -सी चुभन है
मेरे वश में है
निकाल फेंकना ये तीर
पर मैं नहीं निकालती
मैं मुस्कुरा रही हूँ
मुझे सुकून दे रही है
ये चुभन, ये टीस....
-0-
सुंदर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई !!
सुंदर रचना बधाई मंजूषा मन जी ।
ReplyDeleteकभी कभी मन जब प्रेम में डूबा होता है तो उस प्रेम से मिलने वाली टीस भी मीठा सा अहसास देती है...| बहुत बधाई...|
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना मंजूषा जी बधाई।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (15-06-2017) को
ReplyDelete"असुरक्षा और आतंक की ज़मीन" (चर्चा अंक-2645)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुंदर भावपूर्ण रचना मंजूषा जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeletesundar abhivyakti !
ReplyDeleteसरस अभिव्यक्ति
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