1-हादसे ही हादसे
डॉ.शिवजी श्रीवास्तव
हर दिशा में हादसे ही हादसे
हैं,
या खुदा हम किस शहर में आ बसे हैं।
या खुदा हम किस शहर में आ बसे हैं।
राजपथ पर ही सुरंगें फट रही
हैं,
और सिंहासन खड़े चुपचाप से हैं।
और सिंहासन खड़े चुपचाप से हैं।
कौन अब किससे कहे अपनी
व्यथाएँ,
हर किसी की पीठ में खंजर धँसे हैं।
हर किसी की पीठ में खंजर धँसे हैं।
सिरफिरा उनको सियासत कह रही
है
जो कि आँखें खोलकर मुट्ठी कसे हैं।
जो कि आँखें खोलकर मुट्ठी कसे हैं।
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2-रेगिस्तान
- मंजूषा मन
लहलहाते प्रेम- वृक्ष
काट लिये गए,
घने -घने जंगल उजाड़ डाले गए
बंजर कर दी गई
मन की ज़मीन।
नहीं पाई नेह को नमी
न हुई अपनेपन की बारिश
न मिल पाए
प्रेम के उपयुक्त बीज ही,
बेहिसाब बरसे नमकीन आँसुओं
ने
और भी किया बंजर।
धीरे धीरे,
पत्थर होती गई मन की ज़मीन
खोती गई
अपने भावों की उर्वरता
जो बनाए रखती थी
जीवन मे हरियाली।
पत्थर और कठोर हुए
टूटे
टूट कर बिखरे
नष्ट करते रहे स्वयं को
और बदल गए
रेगिस्तान में।
मन की धरती
सदा नहीं थी रेगिस्तान...
प्रेम बन बरसो तो,
सदा नहीं रहेगी रेगिस्तान।
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दो अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग मानसिक व्यथा को बयान करती इन सुन्दर रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई शिव जी और मंजूषा जी...|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोनों रचनाएँ...शिव जी, मंजूषा जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteBahut bhavpurn lekhan,badi gahan abhivyakti hai, rachnakaron ko meri bahut su badhai.
ReplyDeleteडॉ शिवजी सर की रचना बहुत सुंदर है तो मंजूषा जी की रचना भी प्यारी सी है । अच्छा लगा कुछ अच्छा पढ़कर । शिवाजी सर मेरे गुरु है उनका शिष्य होने पर मैं अपने को धनवान समझता हू । कंबोज सर अच्छी रचनाओ को देने के लिए आपका आभार ।
ReplyDeleteडॉ. शिव जी बहुत मतला और दोनों शेर बहुत खूबसूरत ... हार्दिक बधाई
ReplyDeleteमन की धरती सदा नहीं रहती रेगिस्तान
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी सृजन मंजूषा जी आत्मिक बधाई।
हादसे...बेहतरीन सृजन डॉ.शिव जी
ReplyDeleteमन को उद्वेलित करती बहुत सुन्दर रचनाएँ !
ReplyDeleteदोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
दोनों रचनाएँ बहुत बढ़िया!!!
ReplyDeleteडॉ. शिव जी और मंजूषा जी ,बढ़िया रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई!!
हादसे ही हादसे रचना बहुत सुन्दर लगी और रेगिस्तान भाव पूर्ण आशावादी रचना है मन की धरती जो रेगिस्तान में बदल चुकी है प्रेम रस के सींचन से पुन: हरिभरी हो जायेगी । यह आस बाकी है ।दोनों रचना कारों को बधाई ।
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